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भरतेश वेभव कठिन होता है । कपड़ेको छोड़ने मात्रसे तपस्वी नहीं होता है। सर्प काँचुलोको छोड़नेपर क्या विषरहित होता है ? कभी नहीं। ___ मनकी निर्मलता होनेपर ही आत्मसुखका लाभ होता है। उसकी प्राप्ति मुनियोंको भी कठिनतासे होती है। पर इतने बड़े राज्यका भार होते हुए भी तुम्हारे लिए बह आत्ममुख सहज मिला। __भरत ! सुनो, धानके छिलकेका निकालकर जिस प्रभार 'बामः पकाया जाता है उसो प्रकार पंचेंद्रियसंबंधी विषयोंका त्याग कर सब आत्मनिरीक्षण करते हैं । परंतु तुम उस पंचेंद्रिय विषयके बीचमैं रहते हुए भी आत्माको निर्मल बना रहे हो, इसलिए तुम ऋषियोंसे भी श्रेष्ठ हो । चावलके भूसेको अलग करके केवल सफेद चावलको जिस प्रकार पकाया जाता है उमी प्रकार शरीरके यसको छोड़कर आत्मध्यान कुछ लोग करते हैं। परंतु तुम तो शरीरका वखादिसे शृंगारकर ध्यान करते हो। __ अंतरंगको शुद्धि के लिए बाह्मवस्तु संततिका कोई परित्याग करते हैं । परंतु कोई बाह्य वस्तुओंके होते हुए उनमें भ्रांत न होकर अंतरंग से शुद्ध होते हैं।
आभषणोंको पहनकर आत्मध्यान करते हए आरमसुखको प्राप्त करने वाले भूषण सिद्ध हैं, कोई-कोई भूषणोंको त्याग कर आत्मसंतोष धारण करते हैं।
हम सबने बाह्य पदार्थों को छोड़कर आत्मध्यानमें केवलज्ञानको प्राप्त किया । और तुम तो बाह्य पदार्थोके बीचमें रहते हुए भी आत्मसुखका अनुभव कर रहे हो, इसलिए तुम धन्य हो ।
जिन नहीं कहलाकर, तपस्वी नहीं कहलाकर अनुदिन आस्मानुभवमें मग्न होकर उस आत्मसिद्धिको पा रहे हो, तुम भाग्यशाली हो । ___लब भरतजीने विनयसे कहा कि स्वामिन् ! आपके ही प्रसादसे उत्पन्न मेरे लिए केवल्यकी सिद्धि हो, इसमें आश्चर्यकी क्या बात है। यह सब आप हो की महिमा है 1 ठीक है। कृपानिधान ! कृपया यह बतलावें कि बाहुबलि योगोके अंतरंगमें क्या है ? हे चिदमलेक्षण व चित्मकाशक ! मुझे उसे जाननेको उत्कंठा है।
उत्तरमें भगवान ने अपनी दिव्यवाणोसे फरमाया कि "हे भरत ! जब वह बाहुबलि तुमसे अलग होकर आया तब उसने कुछ कटु वचन सुना, उस कारणसे उसके हृदय में क्षोभ उत्पन्न हुआ अतएव तपोभारको प्राप्त किया है। तुम्हारे दो मित्रोंने उसे कहा कि हमारे राजाके राज्यके अन्नपानको छोड़कर बोर कहाँ तपश्चर्या करोगे ? जाओ, इस प्रकार कहनेके