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भरतेश वैभव देखकर आश्चर्य हुआ। जन लोगोंने भी सम्राट्की बुद्धिमलाकी प्रशंसा की।
बाहुबलिकी उग्रता कहाँ ? शान्तिसे आकर मदुवचनोंसे उसके क्रोधको शान्त करनेकी भरतेशकी बुद्धिमत्ता कहाँ ? किसी भी तरह भरतकी बराबरी कोई भी नहीं कर सकते। बोलनेकी गम्भीरता, उपदेश देनेकी कला, सहोदर प्रेम और वात्सल्यपूर्ण बातोंसे जीतनेका विवेक सचमुच में असदृश है । सारी सेनाने मुक्तकंठसे भरतेशकी प्रशंसा की।
युद्धभेरी बजानेके लिए सन्नद्ध होकर भरीकार खड़े थे। वे अलग हट गये । एक आसन वहाँपर रखा गया। भरतेश्वर उसपर विराज. मान हुए । मोतीका छत्र रखा गया। बाहुबलि धपमें खड़ा है, यह भरतेश्वरको सहन नहीं हुआ, भरतेश्वरने आज्ञा की कि उसके ऊपर एक छत्र धरा जाय, उसी प्रकार सेवकोंने किया । भरतेश्वरका भ्रातृप्रेम सचमुचमें अद्भुत है। उस समय महाबलकुमारने रत्नबलराजको इशारेसे बुलाया । रत्नबलराज भी दौड़कर बड़े भाईके पास आगया। रत्नबलकुमारसे भरतेश्वरके चरणों में नमस्कार कराकर महाबलराजने निवेदन किया कि स्वामिन् ! यह मेरा छोटा भाई है। भरतेश्वरने उसे बहुत प्रेमसे लेकर गोदमें रख लिया ! उसे अनेक प्रकारके उत्तम पदार्थीको देकर कहा कि बेटा ! जबतक यह कार्य पूर्ण न हो तबतक तू अपने भाइयोंके पासमें रहो।
नाकके अग्रभागपर उँगलीको रखकर बाहुबलि अपनी दुर्वासना व दुश्चरित्रपर मन-मनमें ही खिन्न होने लगा। क्योंकि वह आसन्न मोक्षक है। बाहुबलि मनमें पश्चाताप करते हुए विचार करने लगा कि हाय ! मैं पापी हूँ। बड़े भाईके साथ विरोध कर कुलके लिए लोकापवादको उपस्थित किया। सचमुचमें कषाय बहुत बुरी चीज है, वह सबकी बिगाड़ देती है। क्या मेरे भाई मेरे लिए शत्रु हैं ? हाय ! दुष्ट कर्मने मेरे साथ धोखा किया। उपभावने मेरे साथ खड़े होकर इस प्रकार लोकापवादके लिए पात्र बनाया । मेरे दुराग्रहके लिए धिक्कार हो। दिव्य आत्मानुभवी मेरे भाईके भ्रातृवात्सल्यको जरा देखो, व्यर्थ ही मैंने अन्यथा विचार किया । हा ! मैंने लोकके लिए असम्मत कार्यका विचार किया। मुझे समझ में नहीं आता कि पिताजीने मेरा नाम उन्मत्त न रखकर मन्मथ क्यों रखा ? पिताजीने सोच-समझकर मेरा नाम मन्मथ रखा है। पृथु ( स्थूल ) कषायको मैंने धारण किया है । उससे मेरे मन में विशिष्ट व्यथा हुई। उस दुःखपूर्ण मनको मैंने इस समय मथन
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