________________
भरतेश वैभव
४२५
छोड़कर कैसे रह सकते हैं, क्योंकि बाहुबलिके वे हितैषी हैं। फिर भरतेश्वरने मंत्री व सेनापतिसे कहा कि छोटी माँको बाहुबलिके जानेसे बड़ा दुःख होगा । इसलिए उनके दुःखको सांता है, तबतक आप लोग रुक जावें । बादमें दीक्षा लेवें। इस प्रकार मंत्री व सेनापतिको रोककर बाकी मित्रोंको अनुमति दे दी। वे मित्र अपने पुत्रोंको भरतेश्वरके चरणोंमें छोड़कर दो विमान लेकर बाहुबलिके पास पहुँचे । बाहुबलिको कहा कि आप एक विमानपर चढ़ जावें । बाहुबलिने कहा कि मेरे लिए स्वतन्त्र विमानकी क्या जरूरत है ? आप सब लोग एक ही विमानपर चढ़कर जाएँ । तब उन लोगोंने प्रार्थना की कि कैलास पर्वतपर्यंत आपको राजतेजमे ही जाना चाहिए। हम लोग एक विमानपर बैठेंगे।
इस प्रकार दो विमानोंपर चढ़कर बाहुबलि व उनके मित्र कैलास पर्वत पर पहुँचे व भगवान् आदिप्रभुके दर्शन कर उनसे योगिरूपको धारण कर लिया । इससे अधिक क्या कहें ?
इधर सम्राट् अनुपात करते हुए बाहुबलिके दोनों पुत्रोंके हाथ घर कर राजमंदिरकी ओर बड़ े दुःखके साथ गये ।
!
बाहुबलि दीक्षा लेकर चले गये यह समाचार सुनते ही यशस्वतीमहादेवीको बड़ा दुःख हुआ । वह मूर्छित हो गई, शैल्योपचार से उसे जागृत किया तो फिर भी अनेक प्रकारसे विलाप करने लगी । हा भैया ! दीक्षा लेकर चला गया ! हा! मेरा छोटा हाथी मदोन्मत्त होकर चला गया ! क्या उसे रोकनेवाले कोई नहीं मिले ? सारे अंत:पुरमें ही रोना मचा हुआ है। भरतेश्वर दोनों पुत्रोंको माताके चरणोंमें रखकर दुःखके साथ बैठे हैं ।
इतने में रात्रि हुई । वह रात्रि दुःखजागरणमें ही बीत गई । प्रातः कालमें झंझानिल नामक दूतने पोदनपुरमें जाकर समाचार दिया | यह समाचार सुनते ही सुनंदादेवी मूच्छित होकर गिर पड़ी। अनेक प्रकारसे उपचार किया गया । जागृत होकर पूछती है कि झंज्ञानिक ! कामदेव मेरा बेटा किधर चला गया ? क्या वह पागल दीक्षा लेकर हम लोगों को छोड़कर चला गया ? क्या उसे दीक्षा ही पसंद आई ? क्या सचमुच में गया ?
झंझानिल कहने लगा कि माता ! इसमें सन्देह नहीं । मैं स्वतः कटक में देखकर आया हूँ। वे अपने मित्रोंके साथ पिताजीके पास चले गये हैं । वहाँपर दीक्षा लेंगे । सुनंदादेवी पुनः विलाप करती हुई कहने