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भरतेश वैभव
नहीं जाता है, यह बड़े आश्चर्यकी बात है। जाओ, मेरे पास मत रहो, इस प्रकार कहते हुए उसे धक्का देकर आगे सरकाया। तथापि भरतेश्वरका पुण्य तो क्षीण नहीं हुआ था, और चक्ररलको पाने योग्य सातिशय पुण्य बाहुबलिने भी नहीं पाया । अतएव वह आगे नहीं बढ़ा, परन्तु सम्राट्ने जबर्दस्तीसे उसे धक्का दिया, इसलिए सरककर थोड़ी दुरपर बाहुबलिके पास जाकर खड़ा हुआ । चक्ररत्न सदृश पुण्यपदार्थका अपमान हुआ । भूकम्प हुआ, धूमकेतु अकालमें दृष्टिगोचर हुआ । सूर्यबिम्ब भी मन्दकांतिसे संयुक्त हुआ। आठों दिशाओमें दुःखपूर्ण शब्द हुआ। सातिशय पुण्यशालीने अल्पपुण्यशालीकी सेवाके लिए चक्रको भेजा, इसलिये यह सब हुआ। महान् पुण्यशाली सम्राट्के पुण्योदयसे षट्खंड वशमें हुआ। यदि उस पूर्वपुण्योपार्जित साम्राज्यको जब हीन पुण्य वालेको वह देव तो सत्पथका विनाश होकर कापथकी उत्पत्ति होती है। फिर इस प्रकारका महोत्पात हो तो आश्चर्य की क्या बात है ? अनहोने कार्यको होने योग्य समझकर महापुरुष प्रवृत्ति करें तो लोकमें अद्भुत बातें क्यों नहीं होगी ? बाहुबलि भी मनमें विचार कर रहे थे कि छी ! मैंने बुरा किया।
गरुड़मन्त्रसे विष जिस प्रकार उतरता है, उसी प्रकार भरतेश्वरके मृदुवचनोंको सुनकर बाहुबलिका क्रोधविष उतर गया । हृदय शान्त हुआ। चढ़ाये हुए फणाको जिस प्रकार सर्प नीचे उतारता है, उसी प्रकार पहिलेका गर्व उतर गया। चित्त शान्त हुआ। हा ! भाईके साथ विरोधकर बड़े भारी अपयशको प्राप्त किया। इस प्रकार विचार करते हुए बाहुबलि सीधा मुखकर खड़े हुए। तथापि भाईकी तरफ देखनेके लिये संकोच हो रहा था। नीचे मुख करके खड़ा है। नाकपर उँगली रखकर विचार करने लगा कि मैं बहुत ही अपहास्यके लिए पात्र बना । मेरे बड़े भाईके साथ बहुत-बहुत द्रोह किया, बुरा किया । __ जिस समय बाहुबलि सीधा होकर खड़ा हुआ तब सब लोगोंको इतना संतोष हुआ कि शायद अपने ऊपरका एक भार ही कम हुआ। उनको निश्चय हुआ कि अब युद्ध नहीं होगा। दोनों पिताओंके युद्धको देखनेका पाप हमें प्राप्त हुआ है, इस परितापसे खड़े हुए अर्ककीति, महाबलकुमार आदिके मुख भी कान्तिमान हुए। मल्लयुबके सिवाय इन लोगोंको गर्वगलित नहीं होगा, इस बातकी प्रतीक्षा करनेवाले मंत्रीमित्रोंको भी केवल बासोंमें ही जीतनेवाले चक्रवर्तीक चातुर्मको