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भरतेश वैभव
४०५ अर्ककीर्ति आदि बालकोंको यह समाचार सुनकर बड़ा दुःख हुआ। पिताको न कहकर उन सबने विचार किया कि अपन ही काकाके पास जावें। हम लोगोंके पहुंचनेपर तो कमसे कम वे इस विचारको छोड़ देंगे। इस प्रकार विचार कर अर्ककीर्ति अपने सहोदरोंको साथमें ले वहाँपर गया । प्रणयचन्द्र मंत्रीको सूचना दी गई व बाहुबलिके लिए अनेक भेंटोंको समर्पण कर बाहबलिको नमस्कार किया। मंत्रीसे बाहबलिने पूछा कि ये सुन्दर बालक कौन हैं ? उत्तरमें मंत्रीने कहा कि आपके पुत्र हैं । काकाको देखनेके लिए बहुत आदरसे भेंट वगैरह लेकर आये हैं । बाहुबलिने क्रोधभरी आवाजसे कहा कि "इनको वापिस जाने के लिए कहो। मेरे पास आनेकी जरूरत नहीं, इनके पिता मेरे लिए राजा हैं। मेरे लिए ये पुत्र कैसे हो सकते हैं ? मुझे फंसाने के लिए आये हैं । वापिस जाने दो इनको।" सचमुच में कर्मगति विचित्र है। कलकंठ ने अर्ककीर्ति आदि कुमारोंसे प्रार्थना की कि आप लोग अभी चले जायें। क्योंकि यह समय अच्छा नहीं है। सो अर्ककीति आदि बहत दुःखके साथ वहाँसे लौटे। इन सब बातोंको हाथीपर बैठा हुआ महाबल कुमार देख रहा था, उसे बड़ा दुःख हुआ । हा ! मेरे बड़े भाइयोंसे भी पिताने हाना तिरस्कार भाव लिहाय! : मरहमानीसा यह नहीं कर सकता है। हम लोग भी बड़े बापके पास जाऐं। इस विचारसे वह हाथीसे उतरकर सीधा भरतेश्वरकी ओर गया। महावलकुमार बहुत सुन्दर है । क्योंकि वह कामदेवका पुत्र है।
दक्षिणांकने चक्रवर्तीसे कहा कि श्री महाबलकुमार जो कि बाहबलिका पुत्र है, आ रहा है। महाबलकुमारने चरणोंमें भेंट रखकर नमस्कार किया, भरतेशने उसे हाथसे उठाकर गोदपर रख लिया। बेटा ! उदास क्यों हो? इतनी गम्भीरतासे व गुप्तरूपसे आनेका क्या कारण है ? किसीके साथ तुम्हारा झगड़ा हुआ? महाबलकूमार कुछ भी नहीं बोला, तब पासके सेवकोंने कहा कि स्वामिन् ! आपके पुत्र काकाको देखने के लिए गये थे । उन्होंने वापिस लौटाया। उसे देखकर दुःखसे यह आपके पास आया है। ___ भरतेश्वरको बहुत दुःस्न हुआ । दीर्घश्वासको छोड़ते हुए उन्होंने कहा कि बाहुबलिके हृदयको परमात्मा ही जानें। उसके हृदयमें क्या यह विध्वंसभाव ! मुझसे यदि कोप हो तो क्या मेरे पुत्र भी उसके लिए वैरी हैं ! कर्म बहुत विचित्र है । बुलाओ ! अर्ककीति कहाँ है ? अर्ककीति आकर हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। भरतेश्वरने जरा क्रोधसे कहा