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भरतेश वैभव
कुटुंब परिवारको छोड़कर इसके पीछे क्यों जा रही हो ? यह हमारें माई तुम्हें क्या लगता है। बोलो तो सही। हमारे भाईको हजार स्त्रियाँ हैं । उन सबसे छिपाकर हमारे भाईको एकान्तमें कहाँ ले जा रही है? तुम बड़ी मायाचारिणी मालूम होती है। तुम्हारे घरपर आनेपर तुमने अपनी सामर्थ्यको बतलाया था। अब हम देखती हैं कि क्या करती है ? भाई ? उसकी अंगूठी लेकर हम तुम्हारे पास ला रही थी । उसने हम दोनोंको एक-एक हाथसे ही दाद दिया और अंगूठीको हमसे छीन ली । चक्रवर्तीको हँसी आई | बोलो लड़की अब चुप क्यों हो ? अब हम लोगोंको धक्का देकर अन्दर जाओ देखें । तुममें कितनी शक्ति है ? वे गंगादेवी व सिन्धुदेवी विनोदसे बोलने लगी। सम्राट्को बहिनों के विनोदको देखकर मनमें हर्ष हो रहा था। बोलने लगे कि बहिन मेरे आदमियोंने जो अपराध किया वह मेरा ही अपराध समझना चाहिये | इसलिये अब आप लोगोंका में इस उपलक्ष्यमें सत्कार करूंगा इसे अन्दर जाने दो । तब दोनों बहिनें कहने लगी कि अच्छा ! हमारा आदर किस प्रकार किया जायगा, चीली । उत्तर में सम्राट्ने कहा कि तुम दोनोंको रत्नका महल बनवाकर देंगे और साथमें सकल संपत्समृद्ध बारह हजार करोड़ ग्रामोंको भी प्रदान कर देंगे ! यह लो, बचन मुद्रिका | तब दोनों संतुष्ट होकर नवदम्पतियोंको आशीर्वाद देती हुई संतोष के साथ अन्यत्र चली गईं ।
भरतेश्वर पट्टरानीके साथ अन्तःपुरमें प्रवेश कर गये। सर्व सुखसामग्रियोंसे सुसज्जित उस शय्यागृह में नववधूके साथ सुखका अनुभव कर सुख निद्रामें मग्न हो गये ।
सुभद्रादेवी अपने पतिको आलिंगन देकर सोई है । परन्तु सम्राट् सच्चिदानन्द परमात्माको आलिंगन देकर सोये हैं। उस सुख शय्या पर उनके शरीरके रहनेपर भी उसका मन मात्र आत्मकलामें मग्न हो गया है । दो घटिका मंगलनिद्वामें समयको व्यतीत कर रानीको जागरण न हो, उस प्रकार धीरेसे उठे व भगवान् हंसनाथ परमात्मा के स्मरण करने लगे । परमात्मयोग में जिस समय वे मग्न थे, उस समय कर्मपरमाणुओंकी निर्जरा हो रही थी। तदनन्तर थोड़ी देरमें सुभद्रादेवी भी उठी । दोनोंने बहुत देरतक अनेक प्रकारसे विनोद वार्तालाप किया। इतनेमें प्रातः काल हुआ । गायकियोंने सूचना देनेके लिये उदय रागमें अनेक गायन गाये । सम्राट् भी अपनी नववधूके नवरागमें मग्न थे ।
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