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भरतेश वैभव
गन्धर्व यहाँ बैठ सकते हैं । यह रंभाका नृत्य हो रहा है, उर्वशीका खेल है, मेनकाका नृत्य भी सुन्दर है, इत्यादि शब्द भरतेश्वर वहाँ सुन रहे हैं । भगवान् के ऊपर देवोंद्वारा पुष्पवृष्टि हो रही है। मोतीका छत्र देवोने लगा है। '२० चादर डोल रहे हैं, पास ही अशोकवृक्ष है, भामलका प्रकाश सर्वत्र फैल रहा है । असंख्यात देवगण जयजयकार कर रहे हैं । हजार दलके कमलके ऊपर जो सिंहासन है उसे चार अंगुल छोड़कर प्रभु विराजमान हैं। उनका प्रकाश करोड़ों सूर्य व चंद्रोंको भी तिरस्कृत कर रहा है । समवसरणस्थित देवगणोंने दूरसे ही देख लिया उनको आश्चर्य हुआ कि यह महापुरुष कौन है ? इस प्रकारके सौन्दर्यको धारण करनेवाले सज्जनको हमने पहिले कैलासमें कभी नहीं देखा था। तीन लोकके रूपको सब अपनेमें व अपने पुत्रोंमें एकत्रित यहाँपर दिखावे के लिए आया मालूम होता है । इत्यादि कई तरह की बातचीत करते हुए अपने आचर्यको व्यक्त कर रहे थे। पासमें आनेपर "यह भरतेश्वर हैं, देवोत्तमका पुत्र हैं। ठीक है । यह वैभव और किसको मिल सकता ? धन्य है" इस प्रकार मनमें विचार करने लगे ।
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भरतेश्वरने हर्ष के साथ अन्दर प्रवेश किया । वेत्रधारियोंने कहा कि हे देवदेव ! पुरुषनाथ ! जरा आप देखें ! भरतेश्वर आ रहे हैं । शरीरपर रत्नाभरणोंको धारण कर, आत्मामें गुणाभरणोंको धारण कर अत्यन्त सुन्दर शृङ्गारयोगी आ गये हैं। जरा देखिये तो सही देवकु मारोसे भी सुन्दर सनिमिषनेत्रधारी अपने हजारों पुत्रोंको लेकर भरतेश्वर आये हैं । हे कोटिसूर्यचंद्रप्रकाश ! सर्वेश ! जरा अवधारण करें । इत्यादि प्रकारसे देवगण भगवान्से प्रार्थना करने लगे ।
तीन लोक के अन्दर के बाहरके पदार्थोंके प्रत्येक द्रव्य गुणपर्यायको प्रतिसमय युगपत् जाननेवाले श्रीप्रभुको भरतेश्वरके आगमनको किसीके बताने की क्या आवश्यकता है ? नहीं! नहीं ! यह तो केवल देवों की भक्तिका एक नमूना ।
भरतेश्वरने आदिप्रभु के चरणपर रत्नांजलिको समर्पण कर साष्टांग नमस्कार किया । पिता जिस समय साष्टांग नमस्कार कर रहे थे उस समय पुत्र भी साष्टांग नमस्कार कर रहे हैं। पिता जिस समय उठे वे भी उठते हैं। पिता जिस समय हाथ जोड़ें उस समय वे भी हाथ जोड़ते हैं। इस प्रकार उस समयकी शोभा ऐसी मालूम हो रही थी कि जैसे एक सूत्रमें बँधे हुये अनेक खिलौने एक साथ अपने सुन्दर खेल दिखा रहे हों ।