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भरतेश वैभव
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ही दक्षिणांकने यह भी कहा कि मैं जल्दी ही जाकर स्वामीको देखता है। आप लोग सर्व परिवारको लेकर पीछेसे आवें। अपने साथ कुछ विश्वस्त व्यक्तियों को लेकर दक्षिणांक आगे बढ़ा और बहुत वेगके साथ सेनास्थानपर पहुँचा । अब वह दक्षिणांक बहुत ठाठबाटके साथ नहीं है। अकेला ही खिन्न होकर आ रहा है। सेनास्थानमें पहुँचने के बाद अपने साथियों को अपने मुक्कामको जानेत्री आज्ञा दी।
उस दिन रात्रिका दरबार था। भरतेश्वरने आदेश दिया कि दरबारमें सबको बुलाओ। इतने में एक इतने आकर दक्षिणांक मानेका समाचार सुनाते हुए कहा कि स्वामिन् ! वह अपने परिवारसे रहित हंसके समान, अथवा पत्तोंसे रहित आमके पेड़के समान आ रहा है । परिवार नहीं, वाद्य नहीं और कोई शोभा नहीं। ८-१० अपने विश्वस्त साथियों के साथ आया था, उनको डेरेमें भेजकर वह अकेला ही आपके दर्शनके लिए आ रहा है। भरतेश्वर समझ गये, उन्होंने उसी समय दूतको आदेश दिया कि अब इस समय दरबारमें किसीको भी न आने की खबर कर दो। इतने में वहाँपर पहिलेसे बैठे हुए मागध, मेषेश्वर आदि उठकर जाने लगे। तब सम्राट्ने कहा कि आप लोग क्यों जाते हैं ? यहींपर रहें। आप लोगोंको छोड़कर मुझे एकांत नहीं है। मेरे आठ मित्र, मंत्री व सेनापति ये तो मेरे खास राज्यके अंग हैं। कार्य बिगड़ गया। बाहुबलिके अंतरंगको मैं पहिलेसे जानता था। उसे एक पत्र लिखकर भेज देते तो ठीक रहता। व्यर्थ ही मित्रको भेजकर उसे कष्ट दिया। इतने में दक्षिणांक आया। आते समय वह अन्यमनस्क व खिन्नमनस्क होकर आ रहा है। किसी बच्चेको कोई खास चीज खोने पर वह जिस प्रकार दुःखसे अपने पिताके पास आता हो उसी प्रकार उसकी उस समय हालत थी। मुख कुंद था, शरीरमें भी कोई उत्साह नहीं, इधर-उधर देखनेके लिए लज्जा मालूम होती है। ऐसी हालतमें उसे धीरज बंधाते हुए सम्राट्ने कहा कि दक्षिण ! अब घबराओ मत ! चिंता मत करो, आनंदके साथ आओ। मैं अपने भाईकी हालत पहिलेसे जानता था। उसके पास दूसरोंको न भेजकर तुमको ही मैंने भेजा, यह मेरी ही लगती हुई । तुम्हारा कोई दोष नहीं है, चिंता मत करो। दक्षिणांकने आकर भरतेश्वरके चरणोंमें साष्टांग नमस्कार कर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! मैं कुछ भी बोल नहीं सकता हूँ। मुझसे ही कार्य बिगड़ गया और किसीको भेजते तो कार्य हो जाता, मुझसे काम निगड़ गया। आपके भाईमें कोई कमी नहीं है । भरतेश्वरने कहा कि