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भरतेश वैभव पंक्तिमें खड़ा कर दिया । भरतेश्वरने अपनी जीभ थोड़ीसी हिलाई तो . वे सबके सब ऊपरकी महलमें जाकर बैठ गई। फिरसे मन्त्र किया पुनः । नीचे आकर बैठ गईं 1 सब स्त्रियोंको आश्चर्य हुआ !
मानाजी इस भूमंडलको इधर-उधर करनेका मन् मेरे पास है। क्योंकि मैं गुरु हंसनाथार्थी हूँ । परन्तु वे सब मंत्र आपके पास नहीं आ सकते । इसलिये मैंने शपथमन्त्रका प्रयोग किया। भरतेश्वरने कहा देखो, ये दासियां मेरे विनोदको देखकर हँस रही हैं । अच्छा ! इनके मुखको टेढ़ा कर देता हूँ, इस प्रकार कहते हुए मन्त्र किया तो उन सौ दासियोंके मुख टेढ़े हुए। पुनः दया कर मन्त्र किया तो सीधे हुए। इसमें आश्चर्यकी क्या बात है ? लोकके सभी व्यन्तर उनके सेवक हैं। फिर वे ध्यान-विज्ञानी क्या नहीं कर सकते !
पुनः कुछ सोचकर उन्होंने मन्त्र किया, पासमें खड़ी हुई मधुवाणीका मुख एकदम टेढ़ा हो गया। सबके सामने लज्जासे आकर मधुवाणीने भरतेश्वरके चरणों में नमस्कार किया। भरतेश्वरने उसे मन्त्रसे सीधा कर दिया। कहने लगे कि मधुवाणी ! भूल गई, जिस समय मेरा विवाह हो रहा था उस समय तुम कितनी टेढ़ी बोली थी। उसीके फलसे आज तुम्हारा मुख टेढ़ा हो गया। मधुवाणीने लज्जासे कहा कि राजन् ! पहिले टेढ़ी बोली तो क्या हुआ। जब आप साससे मिलनेके लिये गये तब आपकी खूब प्रशंसा की थी तथापि आपने सबके सामने मेरा इस प्रकार अपमान कर ही दिया। भरतेश्वरले उत्तरमें कहा कि पहिले देढ़ी बातोंको बोली उसके फलसे मुख टेढ़ा हुआ । बादमें प्रशंसा की उसके फलसे सीधा हुआ। अब चिन्ता क्यों करती हो? ।
राजन् ! आपने मुझ गरीब दासीपर मन्त्र चलाया। आपके ऊपर भी मन्त्र चलानेवाले देवता मेरे पास हैं । समय आनेपर देखा जायेगा ! अभी रहने दीजिए। इस प्रकार मधुवाणीने कहा । ___ भरतेश्वरने उसे अनेक रत्न व वस्त्रोंको देते हुए कहा कि अच्छा ! रोओ मत ! खुश रहो । इस प्रकार विनोदके बाद सर्व चिन्ताओंको छोड़कर बहुत भक्तिसे माताको पूजा की। रानियोंने बहुत भक्तिसे आरती उतारी। अपने पुत्रोंके साथ जलगंधाक्षतपुष्पाप्नदीपगुग्गुलफल समूहसे माताकी पूजा कर बन्दना की । कुलपुत्रोंकी रीत कुछ और होती है। पूजनेके बाद सब लोगोंने मंगलासनों पर बैठकर भोजन किया । इससे अधिक और क्या वर्णन करें? भरतचक्रवर्तीक भवनका भोजन सुरलोकके अमृतभोजनके समान है । उसे वर्णन करनेमें देरी