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भरतेश वैभव
भी बढ़कर मंत्र है। उसका भी प्रभाव जरा देखें । तंत्रोंके प्रयोगके लिए सारे शरीरका उपयोग करना पड़ता है। परंतु मंत्र प्रयोगके लिए केवल ओठको हिलानेसे काम चल सकता है। मंत्रके रहते हुए तंत्रके झगड़े में पड़ना ठीक नहीं है । इसलिए आप लोग मंत्र के सामर्थ्यको देखें ।
माताजी ! आप पूजाके लिए उठें व इस सिंहासनपर विराजमान हो जाएं। माताने कहा ऐसा नहीं हो सकता
"ॐ महा हंसनाथाय नमः स्वाहा, माताजी ! उठे, यदि नहीं उठो तो भवदीय भरत भैयाकी शपथ है स्वाहा " भरतेशने मंत्र पठन किया | माता एकदम उठकर खड़ी हो गईं ।
ॐ परमहंसनाथाय नमः स्वाहा, माताजी, धीरे-धीरे चलें, यदि नहीं चलें तो भवदीय चक्राधिपतिकी शपथ है स्वाहा " ( दूसरा मंत्र ) माता धीरे-धीरे चलने लगीं, सभी स्त्रियों हँसने लगीं ।
'आपके, भरतेश्की शप है, इस आसनपर कढ़ जाइये स्वाहा' स्त्रियाँ हँसती हुई हाथ जोड़ रही थीं, यशस्वती उस आसनपर चढ़कर बैठ गई ।
" माताजी ! भवदीय बड़े बेटेकी शपथ है, भरतेश्वर के बड़े बेटेकी शपथ है, मेरे छोटे बेटेकी शपथ है, आपके छोटे बेटेकी शपथ है आप स्वस्थ बैठी रहें, ठः ठः स्वाहा " ।
ऊपरके शब्दोंको पुत्र व भाइयोंको बुलाते समय प्रेमसे भरतेश्वर प्रयोग करते थे । भरतेश्वरके मन्त्रको देखकर एकदम सबलोग हँस गये, यशस्वती भी हँसती हुई कहने लगी कि बेटा ! बहुत अच्छा मंत्र सीखे हो ? क्या अब किसीकी शपथ नहीं रही ?
भरतेश्वरने कहा किं नहीं ! नहीं ! अब आप विराजे रहें । अर्ककीर्तिसे कहा कि बेटा ! देखा ! मंत्रके सामर्थ्यको ? सब पुत्रोंने हँसते हुए कहा कि पिताजी ! आपके मंत्र को हमने देखा सचमुच में आश्चर्यकी बात है । अर्ककीर्तिने अपने दुपट्टे को भरतेश्वरके चरणोंमें रखकर इस प्रसंग में नमस्कार किया। आदिराजको आदि लेकर बाकी सभी पुत्रोंने अपने उत्तरीय वस्त्रोंको चरणोंमें रखकर नमस्कार किया । अपने बड़े भाइयोंको देखकर गुणराज नामक छोटे बालकने अपने पहने हुए शर्टको निकालकर वहाँ रखकर नमस्कार किया । गुरुराज नामक बालकके शरीरपर शर्ट भी नहीं था । उसने अपने दासीके हाथसे एक हाथ रुमालको छीनकर उसे रखकर नमस्कार किया। सबको आश्चर्य
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