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भरतेश वैभव अपनी सत्कीति हो सकती है ? क्या आपके बड़े भाई लोकके सामान्य भाइयोंके समान हैं ? और छोटे भाई आप भी सामान्य नहीं हैं । आप दोनों लोकमें अग्रगण्य है। आप दोनों मिलकर प्रेमसे रहें तो जगतका भाग्य और हमें आनन्द है। इसलिए हमारी प्रार्थनाको स्वीकार कीजिए" यह कहते हुए सभी मंत्रियोंने बाहुबलिके चरणोंमें साष्टांग नमस्कार किया। तब बाहुबलिने उन्हें उठने के लिए कहा। तब उन लोगोंने कहा कि हमें बचन मिला तो हम उठेंगे । उत्तरमें बाहुबलिने यह कहा कि मेरी एक दो बातोंको तो सुनो । तब वे उठे ।
बाहुर्याल- मंत्री व मित्रों ! तुम लोगोंको मैं अपना हितैषी समझला था, परन्त लोगोंने भी मेरे मन और इच्छाके विरुद्ध ही बात की। तुम लोगोंका कर्तव्य तो यह था कि तुम मेरी बातका ही समर्थन करते। देखो तो सही, चक्रवर्तीका मित्र यहाँपर आकर चक्रवर्तीकी इच्छानुसार ही बोला। इसको देखकर तो कमसे कम तुम लोगोंको मेरी तरफसे बोलना चाहिए था। परन्तु आप लोग तो मेरे विरुद्ध ही बोले, ऐमा करना क्या आप लोगोंको उचित है ? __ इतनेमें वहाँ उपस्थित कुछ स्त्रियोंने आकर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! सबकी इच्छाका पालन करना चाहिए । बाहुबलिको क्रोध पहिलेसे चढ़ा हुआ था, परन्तु उस क्रोधका उपयोग मंत्री-मित्रोंके प्रति वे नहीं कर सकते थे। अब वे स्त्रियों उनके क्रोधकी बलि बन गई। आवेशपूर्ण वचनोंसे उन्होंने कहा कि चुपचाप अपने काम करना छोड़कर मुझे ही उपदेश देने आई हो । कलकंठ इन लोगोंकी जरा मरम्मत करो। इस प्रकार आज्ञा मिलनेकी ही देरी थी, कलकण्ठ आदियोंने उन स्त्रियोंको पकड़-पकड़कर मारा पीटा । मलयमारुत व मंदमारत नामक दो पहलवानोंने उन स्त्रियोंकी खूब खबर ली। चूंसा मारा, चोटी धरकर पटका | मारांश यह है कि उनकी खब दुर्दशा की गई। उन लोगोंने दीनता से प्रार्थना की कि हम पर दया दिखा दी जाय, आगे हम कभी ऐसा न करेंगी। पहलवानोंने जो उनको मारा, उससे उनको श्वास चढ़ गया, आँखें गिर्राने लगी, पसीना निकल आया। सब लोगोंने बाहुबलिके चरणोंमें मस्तक रखकर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! हमसे भूल हो गई। क्षमा कीजिए। तब बाहुबलिने उनको छोड़नेके लिए कहा, फिर भी क्रोध तो उनके हृदयमें बना रहा । उसीसे वे कहने लगे कि इन स्त्रियोंको ऐसा कहनेकी क्या जरूरत थी? क्या हमारे नगरमें भोगियों की कमी है । भरतेशके नौकरों के प्रति इनको दृष्टि गई