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भरतेश वैभव
बाहुबलि दक्षिण ! तुम तो किसी उपायसे अपने आये हुए कार्यको साधन करना चाहते हो, परन्तु मैं तो अपने कार्यके महत्वको देखता हूँ । दक्षिण
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स्वामिन्! आपके कार्य में हानि पहुँचाने की बात मैं कैसे कर सकता हूँ ? क्या मैं कोई परकीय हूँ ? आपकी सेवा करना मेरा कार्य है ? इसलिये आप अवश्य पधारें ।
बाहुबल मैं जानता हूँ कि तुम बड़े चतुर हो, इसलिये बोलने में मुझे मत फँसाओ मैं अभी नहीं आ सकता हूँ, जाओ ।
दक्षिण राजन् ! क्यों बड़े भाईके पास जाने के लिए इस प्रकार कोई निषेध कर सकते हैं ? ऐसा नहीं कीजियेगा ।
बाहुबलि - वह अभी हमारे लिये बड़े भाई नहीं हैं । वह हमारा स्वामी है। तुम मात्र इस प्रकार रंग चढ़ानेकी कोशिश मत करो, मैं सब जानता हूँ । सेना के साथ खड़े होकर एक नौकरको बुलानेके समान बाहुबलिको बुलानेवाला वह भाई है, या मालिक है ? तुम ही सत्य बोलो !
दक्षिण -परमात्मन् ! आप ऐसा बोल रहे हैं ? सभी राजाओंने शर्मनाकर सभाको व्हा चक्रवर्ती स्वयं ठहरनेके लिये तैयार नहीं थे । सचमुचमें हम लोग भाग्यहीन हैं । सर्वश्रेष्ठ चक्रवर्तीको हमने ठहराया । सर्वश्रेष्ठ कामदेवका दर्शन सभी परिवारको कराने की भावना हमने की । परन्तु हमपर आपको दया नहीं आती । क्या करें ? हमारा दुर्भाग्य है ।
बाहुबलि दक्षिण ! मनमें एक रखकर वचनमें एक बोलना यह मेरे व मेरी सेना के लिये शक्य है । तुम और तुम्हारे स्वामी ऐसा कभी नहीं कर सकते । झूठे विनयको क्यों बतलाते हो, रहने दो ! दक्षिण स्वामिन्! मैंने झूठी बात क्या की ?
बाहुबलि - कहूँ ।
दक्षिण कहियेगा |
बाहुबलि - हाय ! तुम लोग आत्मचिन्तामें मग्न आध्यात्मप्रेमी लोग झूठ कैसे बोल सकते हो, मैं ही भूल गया। जाने दो, उसका विचार मत करो।
दक्षिण - आपसे भी गलती नहीं हो सकती है, सकती है। झूठा व्यवहार क्या है। वह कहियेगा । बाहुबलि - जाने दो, व्यर्थ किसीको कष्ट
नहीं है ।
हमसे भी नहीं हो
पहुँचाना अच्छा