________________
भरतेश वैभव चिंता की बात नहीं है । तथापि अयोध्यानगरकी प्रजा आपके दर्शनोंकी अभिलाषासे आपकी प्रतीक्षा कर रही है । श्रीपूज्य माताजी रोज दिनगणना करती हैं। आपके भाई आपको साथ देखनेकी इच्छा करते हैं । इसलिए नमि-विनमिको यहाँसे विदाई कर अपनेको नगरकी ओर प्रस्थान करना चाहिये। उत्सरमें भरतेश्वरने कहा कि मंत्री! तुमने अच्छा स्मरण दिलाया। प्रजा व मेरे भाइयोंको मुझे देखनेको इच्छा है, मैं उसे मानता है। परन्तु मातुश्रीकी इच्छा अति प्रबल है । मैं उसे भूल गया था । अब चलनेकी तैयारी करेंगे। ___ मंत्रीको उचित सन्मान कर सम्राट्ने नमि-विनमिको बुलाकर कहा कि बंधुवर! आजतक आप लोगोंके साथ हमारा बंधुत्वका व्यवहार चला आ रहा था। अब अपने पुत्रोंका भी सम्बन्ध हुआ। यह बहुत हर्षको बात है । तदनंतर नमिराज व विनमिराजको उत्तमोत्तम वस्त्राभरणोंसे सन्मान किया। इसी प्रकार अपने दामादोंको हाथी, घोड़ा, रत्न, वनादिसे सत्कार किया । सुमतिसागर मंत्री आदिका भी सत्कार किया गया। अपनी पुत्रियोंकी भी विदाई करते समय उनके साथ अनेक दासियोंको भी रवाना किया। उन प्रिय पुत्रियोंको विदा करते समय भरतेश्वरको भी मनमें थोड़ा दुःख हुआ। भरतेश्वरकी रानियाँ तो आँसू बहाती हुई पुत्रियोंके पास ही खड़ी थीं। भरतेश्वरने उस दृश्यको देखकर कहा कि देवियों ! आप लोगोंने पुत्रियोंको क्यों प्रसव किया है । पुत्रोंको क्यों नहीं। नहीं तो यह परिस्थिति उपस्थित नहीं होती। पुत्रियोंकी आँखोंसे भी आँसू बह रहे थे । उनको सांत्वना देते हुए सम्राट्ने कहा कि पुत्रियों! आप लोग अभी जावें । मैं जल्दी ही आप लोगोंको लिंबा लाऊँगा । चिंता न करें। इस प्रकार उनको विदा करते हुए भरतेश्वरको दुःख हुआ। जहाँ ममकार है, वहाँ दुःख है, यह तात्विक विषय उस समय प्रत्यक्ष हुआ । नमि-विनमि अपने परिवारके साथ दुःखको भी लेकर वहाँसे निकल गये । तदनंतर सम्राट्ने गंगादेव व सिंधुदेवका भी यथेष्ट सन्मान किया। इसी प्रकार अपनी बहिन गंगादेवी व सिंधुदेवीका भी सत्कार करते हुए कहा कि बहिन ! आप लोग अब जावें। हमें आगे प्रस्थान करना है। सुरशिल्पीको आज्ञा देकर बहिनोंके लिए सुन्दर व उसमरत्नके द्वारा महलका निर्माण कराया। साथमें मध्यमखण्डके २४ करोड उत्तम ग्रामोंको चुन-चुनकर दिया व उनके अधिपतियोंको आमा दी गई कि सदा इनकी सेवामें