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भरतेश वैभव
३३९ श्रीमंत लोग गरीबोंको भूला करते हैं। बड़े लोग लोटोंकी परवाह नहीं करते । इस भरतेश्वरकी संपत्ति-शोभा हमारी बहिनोंसे बढ़ी नहीं तो क्या था ? तब तीनों भाई एकदम हँस गये । नमिराज भी एकदम खिलखिलाकर हँसा ।
सम्राट् कहने लगे कि यहाँपर मेरे पक्षकी केवल आठ हजार पाँच सौ बहिनें हैं । परन्तु तुम्हारे पक्षकी लाखों हैं। इसलिये आप लोग मुझे अधिक दबा रहे हो। बाहरकी दरबारमें तो मेरे पक्षके अधिक मिल सकते हैं। अन्दरकी दरबारमें आप लोगोंके पक्षके अधिक मिल सकते हैं। इसलिए आप लोगोंने यह मौका देखा होगा! अच्छा कोई हर्ज नहीं ! आगे देखेंगे। __इतना हर्ष विनोदमें समय व्यतीत होनेके बाद आगत सर्व बंधुओंने सम्राट्का सन्मान किया। उन चारों भाइयोंने सन्मान किया, सासुओंकी ओरसे मधुवाणीने उपहारोंको समर्पण किया । गंगादेवी व सिंधुदेवीने मन्मान किया। नमि-विनमिकी देवियोंने भाईका आदर किया। तदनन्तर सुवर्ण की पुतलियोंके समान सुन्दर नमिराजको दो सौ कन्यायें व बिनमिराजको पचास कन्यायें सम्राटको नमस्कार करनेके लिये आई। वर्ष-छह महीनेके अन्दर विवाहके योग्य वयको धारण करनेवाली उन कन्याओंको देखकर सम्राट्ने मधुवाणीसे प्रश्न किया कि ये कौन हैं ? मधुवाणीने उत्तरमें कहा कि राजन् ! ये आपकी बहिनोंकी कन्यायें हैं। चक्रवर्तीको परम संतोष हुआ। उन्होंने कहा कि सचमुच में अर्कीति आदि मेरे पुत्र भाग्यशाली हैं, ये कन्यायें उनके लिए सर्वथा योग्य हैं। इतनेमें उन कन्याओंने भरतेश्वरके चरणोंको प्रणाम किया । भरतेश्वरने उनको आशीर्वाद देते हुए उनकी हस्तरेखाओंको देख लिया । उत्तम लक्षणोंको देखकर उन्हें संतोष हुआ। कहने लगे कि आप लोगोंका यहाँ आना बहुत ही उत्तम हुआ। अर्ककीर्ति आदिराज पुत्रोंने आप लोगों को देख ली तो वे कभी नहीं छोड़ेंगे और आप लोगोंने भी उन सून्दर कुमारोंको देखा तो आप लोग भी उनको छोड़ना न चाहेंगी। यह कहते हुए अनेक वस्त्राभरणोंको प्रदान किया। कन्यायें लज्जित होकर परदेके अन्दर गई। - नमिराज कहने लगा कि हमें पहिले जो सम्बन्ध हुआ है उतना ही काफी है । अब अधिक बढ़ानेकी जरूरत नहीं। तब भरतेश्वरने कहा कि नमिराज! तुम्हारी बहिनोंके हमारे घरपर आनेसे क्या कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है। बोलो। खैर ! इसके लिये अपनेको चिन्ता