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भरतेश वैभव इसी प्रकारकी भावनाका फल है कि भरतेश्वर विशिष्ट मुखका अनुभव कर रहे हैं।
इति खेचरिविवाग संधि
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भूचरीविवाह संधि
दूसरे दिनकी बात है । विनमिराज आदि अनेक विद्याधरराजाओंको महल में बुलाकर भरतेश्वरने उनका सत्कार किया, उनको बहुत ही आदरके साथ देवोचित भोजन कराया । साथमें अनेक वस्त्राभूषण, रनोपहार आदिको समर्पण करते हुए यह भी कहा कि आजसे आप लोग यहाँ महल में आकर भोजन करते हुए कुछ दिन तक हमारे आतिथ्यको ग्रहण करें। इसी प्रकार सर्व परिवार दासी, दास आदि जनोंका भी यथोचित सत्कार किया गया । पहिलेकी रानियोंके बीच बैठकर भरतेश्वरने नववधुओंको बुलाया और उनसे यह कहना चाहते थे कि अपने बड़ी बहिनोंको नमस्कार करो । परन्तु भरतश्वरके कहनेके पहिले ही उन चतुर वधओंने उन रानियोंको नमस्कार किया। उन रानियोंने भी बहुत ही प्रेम व आदरके साथ उनका स्वागत किया और आलिंगन देकर अपने पास बैठा लिया। इस प्रकार अनेक बिनोद संकथालाप करते हुए कुछ दिन वहींपर सुत्रसे काल व्यतीत कर रहे थे। इतने में और एक संतोषकी घटना हुई। पुण्यशालियोंको सुखोंके ऊपर सुख मिला करते हैं। पापीजनोंको दुःखोंपर दुःख आया करते हैं।
एक दिनकी बात है भरतेश्वर अपने मंत्री आदिके साथ अनेक राजा-प्रजाओंसे युक्त होकर दरबार में विराजमान हैं। उस समय एक दुतने लाकर एक पत्र दिया । वह पत्र विजयराजका था । उसे स्त्रोलकर भरतेश्वर बाँचने लगे। उसमें निम्नलिखित मंगलवाक्य उनको बाँचनेको मिले। ___ स्वस्तिश्रीमन्महानिस्सीमसामर्थ्य, विस्तारितोर्वरीतल दुस्तररिपुराज वैर्याप्तराजस्तोमसंतोषकरकामिनीजनपंचबाण, षट्खंडभूमंडलानगण्य, नाममात्रश्रवणसुक्षेमकर सुजनेंदुभरतभूपति भरतेशकी चरणसेवामें विजयके भयभक्तिपूर्वक साष्टांग नमस्कार ।