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भरतेश वैभव
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तो शीघ्र है
है । परन्तु यह या नहीं है. हामी से उतरकर सब लोगोंको अपने-अपने स्थानों पर भेजकर सम्राट् अपने महल में प्रवेश कर गये। उन कन्याओं के हृदय में "हम लोगोंका विवाह कब होगा" इस प्रकारकी उत्कण्ठा लगी हुई थी । उसी दिन मेघेश्वरने बाहर से आये हुए राजाओंकी सम्राट्के साथ भेंट कराई । जन राजाओंने भी चक्रवर्तीकी भेंट में उत्तमोत्तम हाथी, घोड़े, रत्न वगैरह समर्पण करते हुए सम्राट्का आदर किया । सम्राट ने भी उनका यथोचित सत्कार किया । भरतेश्वरने तमिस्रगुफाके समान ही खण्डप्रपातगुफाको अपने दण्डायुधसे फोड़ा व दूसरे दिन बहुत आनंदके साथ महलमें आकर प्रवेश कर गये। आज सेनास्थानमें शृङ्गार हो रहा है । सब जगह सजावट होनेके बाद विवाह मंडपकी भी रचना हो गई है तदनंतर सम्राट्ने २००० ( दो हजार ) कन्याओंके साथ बहुत वैभव से विवाह कर लिया । कलिराजकी कन्या राजमति, कामराज की कन्या मोहिनीदेवी, इसी प्रकार माधवराज व चिलातकराजको मृदुमाधुर्ययुक्त अष्टकन्यायें भरतेश्वरके मनको प्रसन्न कर रही थीं । भरतेश्वरने तत्क्षण सब कन्याओं को अपनी मायकेको भुला दिया । वे देवियाँ भी अब स्वर्गीय सुखोंको अनुभव करती हुई अपने समयकी व्यतीत कर रही हैं । उन कन्याओंके जनकोंका भरतेश्वरने योग्य रूप से सत्कार किया । भरतेश्वर आनंदमग्न हैं । अब अपने जरा नमिराज की महलकी ओर जाकर आवें ।
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नमिराज अपनी महल में कुछ आप्त, मित्र व बंधुओंके साथ विराजे हैं। बंधुजन नमिराजसे निवेदन कर रहे हैं कि स्वामिन्! आपकी बहिनका सम्राट्को समर्पण करना उत्तम है । इसपर आप अवश्य विचार करें इस बातका समर्थन सुमतिसागर मंत्री व बिनमिराजने भी किया । नमिराजने उत्तर दिया कि आप लोग क्या कहते हैं ? क्या मैं सुभद्रा बहिनको देने के लिए इन्कार करता है ? नहीं, नहीं। जब वह हमारे नगर में आयगा तब देना उचित है । व्यर्थ ही शराबियोंके समान अपनी कन्याको वहाँपर ले जाकर देता तो मुझे पसन्द नहीं है। मैं मानता हूँ कि उसकी संपत्ति बढ़ गई है । परन्तु राजवंशकी दृष्टिसे में उससे कम नहीं हूँ । उसको यहाँ आने दो, आप लोगोंकी इच्छानुसार मैं यह कार्य करूँगी ।
नमिराज के वचनको सुनकर वे कहने लगे कि राजन् ! हम लोग २०