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भरतेश वैभव
वह यहाँपर इस प्रकार बुलाने पर नहीं आ सकता है। मैं जानती हूँ उसके मनको, तुम्हारे गिता होते तो.......... ।
नमिराज--माता! वह यहाँपर अपने मुख्य व्यक्तियोंको भेजकर सगाई करनेके लिए भी तैयार है। वहींपर मुझे आनके लिए कह रहा है। ऐसी हालतमें मैं कैसे जा सकता हूँ ! हाँ! यहाँ आकर वह पूर्वमंगलकार्य करे तो भी मैं उसे आनंदके साथ कन्या दे सकता हूँ।
यशोभद्रा--फिर कोई हर्ज नहीं, मैं अपनी प्रधान दासी व तुम्हारे मंत्रीको उसके पास भेजती हूँ। वे जाकर मेरी ओरसे मेरे भानजेको सब बात कहेंगे । वह मंजूर करेगा । अब तो दे सकते हो न ?
नमिराज-अच्छा ! मंजूर है।
यह कालिन्दी बाल्यकालसे ही उस भरतेश्वरको जानती है । साथ ही यह मधुवाणी अपनी मधुरवाणीसे भरतेश्वरको प्रसन्न करनेके लिए समर्थ है। इन दोनोंसे यह कार्य हो जायगा। इस प्रकार विचार कर सभी विषयोंको समझाकर मधुवाणी व कालिंदीको सुमतिसागर मंत्रीके साथ भेज दिया और साथमें सम्राटके लिए उचित अनेक उपहारों. को भी भेजे । वे तीनों विमानपर चढ़कर सेनास्थानपर आये । भरतेश्वर दरबार लगाये हुए विराजमान थे। सुमतिसागर अकेला ही दरबारमें गया। उन्होंने उपचार वचनके बाद सुमतिसागरसे आगमनकारणको पूछा ! सुमतिसागरने कानपर कुछ कहा ।।
"स्वामिन् ? कार्य क्या है, मुझे मालूम नहीं है, आपकी मामीजीने अपनी दोनों दासियोंको आपके तरफ भेजा हैं, उनके साथ मैं आया हूँ । विशेष वृत्तांत वे ही कहेंगी। वे दोनों कालिंदी और मधुवाणी बाहर खड़ी हैं ।'' भरतेश्वरने समझ लिया कि ये कन्यावृत्तांतको लेकर आई हैं। परन्तु बाहरसे किसीको मालूम होने नहीं दिया। साथमें सब दरबारी लोगोंको भेजकर अन्दरके दरबारमें जा विराजमान हुए। अंदरसे पंडिताको बुलाकर बाहरसे दोनोंको बुलाया। पंडिता उसी समय आई। दोनों विद्याधरी भी अंदर प्रवेश कर गई। कालिंदीने यह कहती हुई कि बहुत समयके बाद स्वामीका दर्शन हुआ, सम्राट्के चरणोंको नमस्कार किया। मैंने स्वामीके छोटे छोटे चरणोंको देखा था, परन्तु अब बड़े चरण हुए हैं, इस प्रकार कहकर चरणस्पर्श किया। स्वामिन् ! क्या आप पहिचान गये कि मैं कौन हूँ ? तब सम्राट्ने कहा कि क्या कालिंदी नहीं ? भरतेश्वरकी स्मरणशक्तिपर आश्चर्य