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भरतेश वैभव
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करनेका काम हमारा है। इन बातोंको विचार करनेका यह समय नहीं है ।
नागर - मिराज कैसा है ? आप लोग नहीं जानते हैं ? कन्या देनेकी इच्छा न होने से पहलेसे ही अतिवक्र व्यवहार करता था। अब अपनेको सहन करना चाहिये । जिसमें कुटिलनायक इसे पहिले से बहुत अभिमान आ गया है, उसकी बनके प्रति चक्रवर्तीने नजर डाली तो और भी फूल गया । जाने दो। उसका मार्ग योग्य नहीं है । परन्तु इन सबके चित्तको शान्त करनेके लिये बुद्धिसागर मन्त्री कह रहा था कि आप लोग व्यर्थ क्यों बोलते हैं ? यह सम्राट् के मामाके पुत्र हैं। चक्रवर्तीकी महत्ता तो हम लोगोंको नहीं है । इसलिये वे चक्रवर्तीका ही स्वागत करनेके लिए आ सकते हैं हम लोगोंको इस समय इन बातोंपर विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है । हम लोग जिस कार्यके लिए आये हैं, उस कार्यको हमें करके जाना चाहिये ।
सब लोगोंने गगनबल्लभपुर में प्रवेश किया। राजमहल में प्रवेश करके सब लोगोंने दरबार में स्थित नमिराजको देखा । वेत्रधारी चप रासीने नमिराजको निम्नलिखित प्रकार सबका परिचय कराया ।
स्वामिन् ! यह भरतेशके सर्व भाग्य के लिए आधारभूत, सर्वलोकके लिथे अनिमिषाचार्य बुद्धिसागर मंत्री हैं यह अमोघवीरताको धारण करनेवाले मेघेश्वर व विजयराज हैं। सम्राट्का प्रधान सेनाध्यक्ष है । यह भरतचक्रवर्तीके लिए परम विश्वासपात्र, चक्रवर्तीका परम मित्र व्यन्तरेंद्र मागधामर है, स्वामिन् ! इनका स्वागत करो । यह वरतनुदेव दक्षिण समुद्रका अधिपति है, यह पश्चिम समुद्रके अधिपति प्रभासेन्द्र हैं; ध्रुवगति, सुरकीर्ति, प्रतिभास नामक ये तीनों देव मागधादि देवोंके प्रतिनिधि हैं। स्वामिन् ! यह तमिस्रगुफाके अधिपति कृतमाल देव हैं, यह खण्डप्रपातगुफा के अधिपति नाट्यमाल हैं ।
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इस विजयार्ध पर्वत मध्यप्रदेशमें हम लोग रहते हैं । परन्तु इस पर्वतके ऊपर यह विजयार्धदेव राज्य कर रहा है । यह नागेन्द्र के समान है । हिमवान् पर्वतकी उस ओर नाग, यक्ष आदि जातिके देवोंके अधिपति होकर यह हिमवन्त देव राज्य कर रहा है। हे राजन् ! इसे जरा देखें । इसी प्रकार पश्चिम व उत्तर खण्डके राजा भी यहाँ मौजूद है | पश्चिम खंडके राजा कलिराज आदि राजाओंको देखें। ये मध्यमखंडके राजगण हैं । यह माघवेन्द्र हैं। यह चिलातेन्द्र हैं : नमिराजने आतंक