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भरतेश वैभव
ले गई। वहाँपर अनेक स्त्रियोंके बीच आनंदसे बैठी हुई उस सुभद्रादेवीको देखा । यशोभद्राने पुत्रीसे कहा कि बेटी ! तुम्हारे राजा भरतेश्वरकी बहिनें आ गई हैं, उनसे मिलो। तब सुभद्रादेवीने उठकर दोनोंको आलिंगन दिया । तदनंतर तीनों मिलकर वहाँ बैठ गईं। पासमें ही यशोभद्रादेवी भी बैठ गई। . ___ सुभद्रादेवीकी बोलचाल हावभावको देखकर गंगादेवी व सिंधुदेवी ने मनमें विचार किया कि सचमुच में यह सामान्य लड़की नहीं है। सम्राट्की पत्नी होने योग्य है । यह चक्रवर्तीको मोहित किये विना नहीं रहेगी। इसके शृङ्गार, अलंकार, सौंदर्य आदि देवांगनाओंको भी तिरस्कृत करते है । मनुष्यस्त्रियोंकी तो बात ही क्या है ! सुभद्रादेवीके प्रत्येक अवयवके आभरण अत्यन्त शोभाको प्राप्त हो रहे थे। अनेक सखियां उसकी सेवामें खड़ी हैं। तांबूलदान आदि कार्यमें सदा सिद्ध रहती हैं वह सुभद्रादेवी बहुत गंभीरतासे उन देवांगनाओंकी ओर देखती हुई बैठी थी। देवियोंने प्रश्न किया कि हमारे भाईके मनको हरण करनेवाली क्या तुम ही हो ? सुभद्रादेवीने कुछ भी उत्तर न देकर मुसकराकर, शायद मौनसे यह कह रही है कि यह कौन सी बड़ी बात है । पुनश्च वे प्रश्न करने लगी कि क्या यही तिलक भरतेश्वरके मनको प्रसन्न करेगा? क्या यह वेणी ही सम्राटको मोहित करेगी। बोली देवी ! तुम मौनसे क्यों बैठी हो ? तब सुभद्रादेवीने लज्जासे सिर झुकाया। वे दोनों बार-बार उसे बुलवानेकी कोशिश कर रही हैं परन्तु वह लज्जासे बोलती नहीं। फिर उसे चिढ़ानेके लिये कह रही है कि यह सुन्दरी तो जरूर है, परन्तु सरस नहीं है। क्योंकि जब हम स्थियोंसे नहीं बोलती है तो अपने पतिसे कसे बोल सकती है ? केवल मुन्दरी रहनेसे क्या प्रयोजन ? देखने के लिये सुन्दर दिखनेवाले फल यदि सरस न हो तो क्या प्रयोजन ? तब मधुवाणी कहने लगी कि यह आज नहीं बोलेगी। कल या परसों आप देखें। आप लोगोंको एक दो बातोंमें ही निरुत्तर कर देगी। आप लोगोंकी बात ही क्या है ? आपके भाईकी बुद्धिमत्ता भी हमारी देवीके सामने कभी-कभी चल नहीं सकेगी। उनको भी किसी किसी समय निरुत्तर कर देगी। हमारी देवीकी बुद्धिमत्ताके सामने दूसरोंका चातुर्य नहीं चल सकेगा। आज रहने दीजिये। तब गंगादेवी व सिंधुदेवीने कहा कि मधुवाणी ! ठीक है ! शायद इस सुभद्रादेवीका नियम होगा कि अपने पतिके सिवाय