________________
भरतेश वैभव
प्रभावसे कैसा भी कठोर हृदय क्यों न हो, वह पिघल जाता है । उनको मुख ही सुखका प्रसंग आता है। आगेके प्रकरणसे पाठक सुभद्राकुमारीके साथ भरतेश्वरका विवाह होनेके मंगलप्रसंगका दर्शन करेंगे । भर. तेश्वर सदा संसारमें भी सातिशय सुख मिल सके इसके लिए आत्मभावना करते हैं । उनके हृदयमें सदा आत्मविचार बना रहा है । ___"हे परमात्मन् ! जो व्यक्ति हृदयसे तुम्हें देखता है उसे तुम अविच्छिन्न सुखको प्रदान करते हो, वह सुख अनुपम है । क्योंकि तुम सुखसागर हो । अतएव सदा अचल होकर मेरे हृदयमें बने रहो। हे सिद्धात्मन् ! आपको उपासना करनेवाले व्यक्ति अनेक सिद्धियोंको साध्य कर अंतमें संसिद्धि ( मुक्ति) युवतीके साथ विवाह कर लेते हैं जैसा कि आपने कर लिया है। इसलिए हे भव्यबांधव ! अगणित सुखको प्राप्त करने योग्य सुबुद्धिको प्रदान कीजियेगा।" इसी भव्य भावनाका यह फल है कि उनको बार-बार सुखसाधनोंकी प्राप्ति होती रहती है।
इति नमिराजविनय सन्धिः
विवाहसंभ्रम सन्धि नमिराज अपने मनमें विचार करने लगा कि जब स्वयं सम्राट्ने जिनको अपनी सहोदरियोंके नामसे उल्लेख किया, ऐसी अवस्थामें वे अपनी स्त्रियोंको नहीं लाना यह उचित नहीं है । उसी समय उनको बुलवानेकी व्यवस्था की गई। विनमिराजको माता शुभदेवी, उसकी पांच सौ देवियोंके साथ आई व नमिराजकी आठ हजार रानियां भी आ गई। सबका स्वागत किया गया। __ यशस्वतीदेवी जो कि भरतेश्वरकी माता हैं, उसका भाई कच्छराज हैं । सुनन्दादेवीके भाई महाकच्छ हैं। दोनों सुखी हैं । कच्छराजको नमिराज व सुभद्रादेवी और महाकच्छको इच्छामहादेवी व विनमिराज इस प्रकार प्रत्येकको दो-दो संतान हैं । कामदेव बाहुबलिके साथ इच्छामहादेवीका विवाह हुआ है। पोदनपुरमें सुखसे अपने समयको व्यतीत कर रही है। सुभद्रादेवीके साथ आज भरतेश्वरके विवाहकी तैयारी हो रही है । अतएव इस मंगल प्रसंगमें सब लोग यहाँपर एकत्रित हुए हैं।