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भरतेश वैभव
३१३ है । लोकमें सबकी यह रीत है कि राजाके लिए एक पट्टरानी रहती है। फिर इसके लिए हम क्यों इन्कार करेंगी? क्या हम लोग कोई गँवारकी स्त्रियाँ हैं ? या शूद्रोंकी कन्यायें हैं ? नहीं। हम सब क्षत्रियोंकी कन्यायें हैं। फिर क्यों उसके पट्टरानीपदके लिए इन्कार कर सकती हैं ? उस सुभद्रादेवीको जो महत्व प्राप्त होगा वह सब हमारे लिए ही है ऐसा हम समझती हैं । क्योंकि वह क्षत्रियपुत्री है । हम भी सब उसी वर्ण की हैं। फिर क्यों हमें दुःख होगा। इसमें विचार करनेकी कोई बात नहीं है। उनके सर्व शर्तोंको मंजूर कर विवाह कर लेना चाहिये । यह बात हम लोग बहुत सन्तोषके साथ कह रही हैं। यह भी जाने दीजिये । हम लोगोंका कर्तव्य है कि पति के इच्छानुसार चलें। पतिके इच्छाके विरुद्ध जो जाती है क्या वह राजपुत्री हो सकती है ? हम लोग हृदयमें एक रखकर मुखसे एक बोल नहीं सकतीं। सन्तोषके साथ सुभद्राबहिनको पट्टरानी बनाकर लावें। इस प्रकार रानियोंने हर्षपूर्वक सम्मति दी।
वह दिन आनन्दसे व्यतीत हुआ 1 दूसरे दिन सम्राट्ने कालिंदी व मधुवाणीका सत्कार किया एवं विद्याधर मन्त्रीका भी सत्कार कर उनको रवाना किया। भण्डारमती नामक बुद्धिमती स्त्रीके साथ लग्न निश्चयमुद्रिका व आभरणोंके करंडको देकर विजयार्धपर भेजनेकी तैयारी की । विशेष क्या ? सेनाके संरक्षणके लिए जयन्तको रखकर बाकीके सभी व्यन्तर, म्लेच्छ व विद्याधर राजाओंको वहाँपर जानेकी आज्ञा दी गई । बहुत संतोषके साथ छप्पन देशके राजा व राजपुत्र व अपने मित्रोंको सम्राट्ने वहाँपर भेजा जिससे मामीजीको हर्ष हो जाय । मंगलोपहारके साथ समस्त राजगणोंको भेजकर इधर अपनी बहिनोंके तरफ भी समाचार भेजा।
भरतेश्वर सचमुच में असदृशपुण्यशाली हैं। वे जहाँ जाते हैं वहाँ उनका आदर ही आदर होता है। प्रतिसमय उनको सुखसाधनकी ही प्राप्ति होती रहती है। षट्खंडविजयी होकर सर्वाधिपत्यको प्राप्त करनेका समाचार हम पिछले प्रकरणमें बांच चुके हैं। परन्तु इस प्रकरणमें पट्टरानीकी प्राप्तिका संदेश है । इस प्रकार रात्रिदिन उनके आनन्दपर आनन्द हो रहा है । इसका कारण क्या है ? भरतेश्वर रात्रि दिन उस आनन्दकी निधि परमात्माका जिस भावनासे स्मरण करते हैं उसीका यह फल है । उनकी भावना सदा यह रहती है कि
"हे परमात्मन् ! सागरमें जिस प्रकार तरंगके ऊपर दूसरा तरंग आता है उसी प्रकार सम्पत्ति व सन्तोषके ऊपर पुनः सम्पत्ति व संतोष