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भरतेश बैभव इसी भावना का फल है कि उनके कार्यमें कैसे भी विघ्न उपस्थित हों वे सब दूर होकर उन्हें सफलता मिलती है। यह अलौकिक पुण्य प्रभाव है।
इति अंकमाला संधि
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अथ मंगलयान संधि विजयप्रशस्तिको लिखानेके बाद षट्खंडविजयी चक्रवर्तीने उस स्थानपर आठ दिनतक मुक्काम किया । इतने में विजयाधके पास सेनाको छोड़कर विजयराज सम्राटके पस आया। समापने निजमराजके अकेले आनेसे पूछा कि तुम अकेले कैसे आ गये ? अपनी सेना वगैरहको कहाँ छोड़ आये। तब विजयराजने विनयसे कहा कि स्वामिन् ! पूर्व और पश्चिम खंडकी तरफ गये हुए सब आकर विजयार्धपर्वतके पास एकत्रित हुए हैं। खंडप्रपातगुफाके पास मध्यखंडकी गंगाके तटमें दोनों सेनाओंको एकत्रित कर मेघेश्वर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । सम्राट् सुनकर प्रसन्न हुए । विजयराज ! हमें आगे उसी रास्तेसे जाना है । अतः मेघेश्वर वहाँपर सेनाके साथमें खड़ा है यह अच्छा ही हुआ। परन्तु तुम यहाँपर किस कार्यसे आये ? बोलो तो सही । स्वामिन् ! पूर्व पश्चिमखंडके राजाओंमें कुछ लोग आपकी सेवामें कुछ उत्तमोत्तम भेंटको लेकर आ रहे हैं। कुछ लोग सून्दर कन्याओंको लेकर उपस्थित हैं। पश्चिमखंडके अधिपति कलिराज हैं, पूर्वखंडके अधिपति कामराज हैं। वे दोनों एक-एक सुन्दर कन्याओंको लेकर तुम्हें समर्पण, करने आ रहे हैं । उन्हीं के समान मध्यखंडके अनेक राजा, कन्या, हाथी घोड़ा आदि उत्तमोत्तम उपहारोंको लेकर उपस्थित हैं। स्वामिन् ! और एक बात सुनिये । उत्तरश्रेणिक अनेक विद्याधर राजाओंको परसों ही सूमातिसागर मेरे भाई मेघेश्वरके पास छोड़कर चला गया। एकएक खण्डसे चार-चार सौ कन्याओंको लेकर वे उपस्थित हैं । कुल दो हजार कन्याओंको लेकर विद्याधर राजा उपस्थित हैं। स्वामिन् ! यह आश्चर्य की बात नहीं है और एक बात सुनियेगा । आपके साथ विवाह करने के लिए जो कन्याएँ लाई गई हैं उनको व्रतसे संस्कृत करनेके लिये चारण मुनीश्वर सेनास्पान पर उतरे थे। उन्होंने सभी