________________
भरतेश वैभव
स्वामिन् ! पश्चिमम्लेच्छखण्ड हस्तगत हुआ । विजयलक्ष्मीने आपके गले में माला डाल दी. इस देशके राजा लोग हे अध्यात्मसूर्य ! बहुत संतोषके साथ आपके चरणोंके दर्शन के लिये उत्सुक थे। कितने ही राजा आपके आगमन की वार्ता सुनकर आपकी सेवामें, भेंट करनेके लिये कितने ही उत्तम हाथी-घोड़ोंकी तैयारी कर रहे थे। कितने ही राजाओंने हाथियों के समान गमन करनेवाली मंदगजगामिनी कन्याओंको श्रृंगार कर रखा था । वे लोग जातिक्षत्रिय हैं। इस विचारसे उन्होंने समझा था कि कुमारी कनकट स्वीकार कर लेंगे। परंतु मैंने उनको कहा कि हमारे स्वामी बतगात्र कन्याओं को ही ग्रहण करते हैं। व्रतरहितोंकी वे स्वीकार नहीं करते हैं। व्रतको ग्रहण करने के लिये दीक्षकाचार्य मुनियोंकी आवश्यकता है, परंतु इस खण्ड में धर्मपद्धति नहीं है। मुनियोंका अस्तित्व नहीं। ऐसी परिस्थितिमें उन लोगोंने स्वीकार किया कि हम लोग आर्यभूमिमें आकर योगियोंसे व्रतग्रहण कर लेंगे । परंतु आपके पुण्योदयसे संतोष व आश्चर्यकी एक घटना हुई । अपने इष्ट स्थानमें जानेवाले दो चारण मुनीश्वर आकर इस भूमिमें उतर गये । उनके हाथसे हमारे महलमें सबको चारित्र धारण कराया। हमारा कार्य हुआ। वे मुनिराज अपने मार्गसे चले गये। आगे निवेदन इतना ही है कि सुवर्णकी पुतलियोंके समान सुन्दर ऐसी तीनस वीस कन्याओं को लेकर वे राजामण बहुत हर्ष के साथ आ रहे हैं। कललक आपकी सेवामें उपस्थित हो जायेंगे ।
२७०
भवदीय चरणसेवक विजय
इस पत्रको सुनकर सबको हर्ष हुआ । सबने भरतेश्वरकी जयघोषणा की। इस शुभ समाचारको लानेवाले दूतको बुद्धिसागरने अनेक वस्त्राभरणोंको इनाम में दिए। वह दिन व्यतीत हुआ, दूसरे दिनकी बात है | विजयराज बहुत संभ्रमके साथ सिंधु नदीको पार कर अपनी सेना के साथ भरतेश्वरकी सेनाके पास आये । वाद्यध्वनि सुननेमें आई । भरतेश्वरने विजयांकको बुलानेके लिये अपने सेवकोंको भेजा। विजयांकने भी उसी समय आकर भरतेश्वरका दर्शन किया। साथमें अनेक उत्तमोत्तम उपहार पदार्थोंको भेंट में समर्पण किया। साथ में अनेक राजाओंने भी भरतेश्वरको अनेक उत्तम वस्तुओंको भेंटमें समर्पण करते हुए नमस्कार किया और भरतेश्वरके इशारे पर उचित आसनोंपर बैठ गये। विजयराजने सामने आकर कहा कि स्वामिन्! ये जितने भी राजा हैं
-TI