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भरतेश वैभव
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स्कार करना क्या उचित है ? कालमुख व मेघमुख भक्ति से जाकर कालवश नरपतिके चरणोंको नमस्कार किया यह घटना ही आप लोगोंको अपमानके लिए पर्याप्त है। इसका उपाय होना चाहिये। इस प्रकार उन दोनों देवोंके चरणोंमें चिलातक व आवर्तक राजाने प्रार्थनाको । तब देवोंने आश्वासन दिया कि आप लोग उटो । सात-आठ दिन तक ठहर जाओ। तब सव आपलोग देखें। उनके साथ युद्ध करके जीतने की सामर्थ्य हममें नहीं है । तथापि ७-८ दिनतक बराबर मूसलाधार वृष्टि करके उनको जिम रास्तेसे आये हैं उसी रास्तेसे वापिस भेजते हैं। आप लोग चिंता न करें। इस प्रकार उन देवोंके कहनेपर दोनों राजा निश्चित होकर बहाँसे चले गये । उसी समय आकाश बादलोंसे छा गया। हाथियोंक समूहके समान मेघपंक्ति एकत्रित हुई । काल राक्षसों ने शायद युद्ध करने के लिये आकावा में अपनी इस प्रका कालमेघसे सर्व आकाशप्रदेश भर गया । सचमुच में उस समय प्रलयकालका हो भय सूचित हो रहा था। क्या नीलपर्वत ही आकर आकाश प्रदेश में खड़े तो नहीं हुए? अथवा तमाललताओंने आकाश प्रदेशपर आक्रमण तो नहीं किया ? इस प्रकारकी शंका उस समय उत्पन्न हो रही थी । चंद्र सूर्य आच्छादित हुए। दिनमें रात्रि हो गई। सर्वत्र अंधकार ही अन्धकार छा गया। वे दोनों देव पहिलेसे आगेके अनिष्टको सूचित कर रहे हो, मानो उस प्रकार बिजली चमक रही है। बिजली व इन्द्र धनुष के सम्मेलनसे ऐसा मालूम हो रहा था कि शायद वे दोनों देव अपनी आँखोंको लाल करके क्रुद्ध दृष्टिसे नीचे की ओर देख रहे हों । वज्रपाका विस्फोटन कर जिस चक्रवर्तीने दुनियाको हिलाया और भयभीत किया, उसकी सेनाको भय उत्पन्न करनेके लिये बड़े जोरसे मेघगर्जना होने लगी। एक तरफसे बिजली चमक रही है एक तरफ आँधी बह रही है। शायद वह आंधी इस बातकी सूचना दे रही है कि आप लोग जल्दी बहस चले जाएं। प्रलयकालकी ही वृष्टि आ रही है । वह बड़े-बड़े घड़ोसे ही पानी नीचे फैला रही हो, इस प्रकार का भास उस समय हो रहा है । मेधरूपी मदगजोंस मदजल तो नहीं झर रहा है । अथवा मेघरूपी राहू विषको तो नहीं भूँक रहा है। इस प्रकार उस वृष्टिका भाम हो रहा है। उस वृष्टिको देखते हुए ऐसा मालूम हो रहा था कि शायद प्रलयकालकी ही बरसात हो उसकी धारा नारियल के वृक्षोंसे भी अधिक प्रमाणमें मोटी थी। उस समय सारी पृथ्वी जलमय हो गई। चारों तरफसे पानी भरकर सेनाके स्थान-
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