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भरतेश वैभव है, यही परतन्त्रता है । भरतेश्वरके मनको तिलमात्र भी दुःख न होवें, ऐसी भावना करनेवाली उन रानीमणियोंने उसी समय उस बात को बदलकर कहा कि स्वामिन् ! जान दीजिये। अब विवाहका समय अत्यन्त निकट है। आप बिवाहमण्डपमें पधारियेगा। भरतेश्वर भी वहाँसे उठकर बिवाहमण्डपकी और चले गये।
उस समय भरतेश्वरकी शोभा देखने लायक थी। उस समय वे विवाहके योग्य वस्त्राभूषणको धारण किये हुए थे। रास्ते में अनेक सेवक उनको देखते हा हाथ जोड़ रहे हैं और आनन्दके साथ कहते हैं कि भोगसाम्राज्यके अधिपति, लोकागम्थसुखी, कामदेव विजयी भरतेश्वरकी जय हो । इसी प्रकार गायन करनेवाले गा रहे हैं। स्तुतिपाठक स्तोत्र कर रहे हैं। इन सबको देखते हुए भरतेश्वर विवाहमंडपमें दाखिल हुए । उन विवाहमण्डपमें मब विद्याधरकन्यायें पश्चिममुखी होकर खड़ी थीं । भरतेश्वर जाकर पूर्वमुखी होकर बड़े हए। आते समय मोरवर अकेो सी आये। उन्हों मनेगने तीन सौ संख्या में बना लिया अर्थात् अपने तीन सौ रूप बनाकर तीन सौ मण्डपमें खड़े हो गये। मामनेसे अनेक द्विजगण मंगलाष्टकका पाठ बहुत जोरसे कर रहे हैं। अनेक विद्वान् विवाह समयोचित सिद्धांतमंत्रका उच्चारण कर रहे हैं और उत्तमोत्तम मंगलवचनोंसे आशीर्वाद दे रहे हैं। अनेक मुवासिनी स्त्रियाँ मंगलपदगीतोंको गा रही हैं। इस प्रकार बहुत वैभवके माथ आगमोक्त प्रकारसे विवाहविधि संपन्न हो रही है। मंगलाष्टक पूर्ण होनेके बाद वधूवरके बीच में स्थित परदा हटाया गया। उसी समय भरतेश्वरने उन सब कन्याओंका पाणिग्रहण किया । जिस समय भरतेश्वरने उनको हाथ लगाया उन देवियोंको एक दम रोमांच हुआ। उसके बाद उन वधुओंके साथ भरतेश्वर होमकुंडके पास आये और वहाँपर विधिपूर्वक पूजन कर नववधूसमूहके साथ होमकुंडकी तीन प्रदक्षिणा दी। भरतेश्वर जिस समय उन पाणिगृहीत कन्याओं के साथ उस होमकुंडकी प्रदक्षिणा दे रहे थे, उम समबकी शोभा अपूर्व थी। चन्द्रदेव स्वयं अपने अनेक रूपोंको बनाकर साथमें रोहिणीको भी अनेकरूप धारण कराकर मेरुपर्वतकी प्रदक्षिणा दे रहा है, ऐसा मालूम हो रहा था । कन्याओंके मातापिताओंको बहुत ही हर्ष हुआ। उन्होंने भरतेश्वरको कन्या देकर अपनेको धन्य माना । विवाहका विधान विधिपूर्वक पूर्ण हुआ । भरतेश्वरने मंत्री, सेनाधिपति आदिको इशारा किया कि सर्व सज्जनोंको अपने-अपने स्थानोंमें पहुँचाकर