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भरतेश वैभव स्थानपर भेज दिया और स्वयं अपने लिए निर्मित सुन्दर महल में प्रवेश कर गये।
भरतेश्वरकी कितनी अद्भुत मामर्थ्य है ? जहाँ जाते हैं वहाँ अलोकिक वैभवको प्राप्त करते हैं। कैसे भी भयंगारमे भयंकर मंकट क्यों न हो उसे बहत दुरदर्शितापूर्वक विचारकर टाल देते हैं। अपनी प्रजाओंगो कोई प्रकारका काट न हो इसकी उन्हें गलन चिंता रहती है। उसके लिए वे बहुत शीव्र व्यवस्था कारले हैं। उन्हें सब प्रकार की अनुकूलता भी मिलती है। इन सब बातोंका कारण क्या है ? इसका एक मात्र उत्तर यह है कि यह पूर्व पृण्यका फल है। उनकी सतत होनेवाली पुण्यमय भावनाका फल है। वे रात्रिदिन इस प्रकारको भावना करते रहते हैं कि ..
हे सिद्धात्मन् आप लोकमें मत्रको सहमा प्रत्यक्ष नहीं होते हैं। जो लोग ध्यानरूपी करबतसे देह और आत्माके अन्योन्य मिलाएको भिन्न करना जानते हैं उनको आपका रूप प्रत्यक्ष देखने में आता है। आप प्रकाशमान होकर दीखते हैं। इसलिए हे सिद्धात्मन् ! हमें आप नित्य दर्शन दीजियेगा।
हे परमात्मन् ! आप अक्षय सामर्थ्य को धारण करनेवाले हैं। अनुपम लावण्यकी आप मूति हैं । मोक्षमें आप अग्रगण्य हैं, श्रेष्ठ हैं । इतना ही नहीं आपके द्वारा ही लोककी रक्षा होती है। इसलिए परमात्मन ! आप साक्षात् मेरे हृदय में बने रहें। ___ इस प्रकारकी भावना भरतेश्वर रात दिन अपने हृदयमें करते हैं । इसीका यह फल है कि उनको प्रत्येक काममें जय और मिद्धिको प्राप्ति होती है।
इति विजयादर्शन संधि
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कपाटविस्फोटन संधि आठ दिनके बाद भरतेश्वरकी सेवामें जयकुमार उपस्थित होकर निवेदन करने लगा कि स्वामिन् ! आपकी आज्ञानुसार जलभरित खाई का निर्माण हो गया है। आपको उस बातकी सुचना देनेके लिये मैं सेवा में उपस्थित हुआ हूँ । भरतेश्वर उसके वचनको सुनकर प्रसन्न हुए और