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भरतेश वैभव तेश्वरकी वीरतापर मुग्ध हुआ। दण्डायुधका प्रहार उस कपाटपर जिस समय किया उस समय एकदम भुकंप हो गया था। सब लोग बिजलीके पड़ने से जिम प्रकार घबराते हैं उसी प्रकार घबराने लग गये । मागधेद्रादि वीर बार भी पद गये! येना समहमें गर्व कोलाहरू मन मया है। परंतु भरनेश्वर की मामथ्यं व धैर्य अतुल है। वे खाईके पास खड़े होकर बहुत आनंदके माथ उस शोभाको देख रहे हैं। उनके आमपाम ही व्यं नरवीर वाई हैं। - हनने म वहाँपर एक उत्सव और हुआ। विजयार्धदेव भरतेश्वरकी वीरतासे अन्या प्रसन्न हुआ। वह अपने परिवार देवताओंके माथ आकर आकाग प्रदेशमें बड़े होकर भरतंगके प्रति जयजयकार शब्द कर रहा है एवं भरनेटवर के ऊपर उमने पुष्पवष्टि की। इतना ही नहीं, भरतेश्वरको उस अग्निकी गर्मी लगी होगी, इस विचारसे गुलाबजन्द, कपर, चन्दन आदि गीतल पदार्थो की वृष्टि भी की। किन्नर, किंपुरुष जाति के देव भरनेशकी वीरताके गीत गाने लगे। पास में ही गन्धर्वगणिकायें आनन्दसे नृत्य करने लगीं । तदनन्तर वह विजयार्धदेव अनेक उत्तमोत्तम वस्त्र, आभरण, रत्न आदि उपहार द्रव्यों को साथ लेकर परिवारसहित भरतेश्वर के दर्शन के लिये आया । अनेक उत्तम उपहागेंको भरतेश्वरके चरण में समर्पण कर भरतेश्वरको बहुत भक्तिसे साष्टांग नमस्कार किया व निवेदन किया कि स्वामिन् ! हम लोगोंकी दुष्टि आज सफल हो गई। माथमें विजया देवने अपने सब परिवारसे भरतेश्वरके चरणों को नमस्कार कराया । भरनेश्वरने मागधामरकी और देखा। मागधने मम्राट्के अभिप्रायको समझकर निवेदन किया कि राजन् ! यह विजया देव है। यह इस विजयाध पर्वतका अधिपति है । वह बहुत मज्जन है । आपकी सेवाके लिये सर्वथा योग्य है । उसके प्रति आपका अनुग्रह होना चाहिये । उस समय विजयाई देव कहने लगा कि मामधामर ! लोकमें मोक्षमार्गी व तद्भव मोक्षगामी स्वामीको प्रसन्न करने का भाग्य सबको नहीं मिला करना है। सचमुच में तुम हम कृतार्थ हए कि ऐसे स्वामीको प्रसन्न किया। मागधामरने भरतेश्वरसे निवेदन किया कि स्वामिन् ! अब इस विजयादेवको अपने राज्यमें जानेके लिये आजा दी जाय और अपन जिस समय उसर खण्डकी ओर प्रयाण करेंगे उस समय यह आ सकता है । भरतेश्वरने भी उसे पास बुलाकर उसे अनेक प्रकारके भेंट दिये । विजयाधंदेवने भी स्वामीकी आज्ञा पाकर उसे बहुत भक्तिसे नमस्कार कर अपने परिवार सहित