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भरतेश वैभव कि अच्छा ! चिदंबरपुरुष ऐसा बोलो। कहने लगा कि चिबरपूस । भरतेश्वर जोरसे हँसने लगे । अच्छा ! गुरुनिरंजनसिङ, बोलो। कुमार कहने लगा कि निज़सिद्ध । पुनः भरनेश्वरको हमी आई।
फिर भरतेश्वर सब राजाओंका दिग्वाते हुए पूछने लगे कि बेटा ! सामने बैठे हुए ये लोग कौन हैं ? तब उस बच्चेने हाथको आगे न कर अपने बाँय पैरको ही आगे किया ।
तब सब राजाओंने आपसमें बातचीत की कि देखो तो सही बच्चे की बुद्धिमत्ता ! हम लोगों को अपने पादसेवकोंके रूप में समझ रहा है । इसलिये पैरको आगे कर रहा है । आदिचक्रवर्तीके पुत्रके लिये यह साहजिक है।
अर्ककीति कुमार अपने मुखको भरतेश्वरकी कानके पास ले गया। उस समय ऐसा मालम हो रहा था कि शायद पितासे पुत्र कुछ गुप्तमंत्रणा ही कर रहा हो। तब बुद्धिसागर कहने लगा कि स्वामिन् ! अब मुझे मंत्रित्वकी जरूरत नहीं है। पिता राजा है, पुत्र मंत्री है । फिर आप लोगोंकी बराबरी करनेवाले लोक में कौन हैं ? ।
उतने में सब राजाओंने आकर उस बच्चे को अनेक प्रकारके उपहारोंको समर्पण किया । क्योंकि वे बुद्धिमान् थे, अतएव वे समझते थे कि यह हमारा भावी रक्षक है। भरतेश्वरने कहा कि बच्चेके लिये उपहारकी क्या जरूरत है। आप लोग इस झगड़े मे पड़ें नहीं। ऐसा कहनेपर राजाओंने बहत विनयसे कहा कि स्वामिन् ! हम लोगोंकी इतनी सेवाको अवश्य स्वीकृत करनी चाहिये ।
तदनन्तर राजपुत्र व राजाओंने आकर उस पुत्रको अनेक रत्न, सुवर्ण वगैरह समर्पण किया। वहाँपर मुवर्ण व रत्नका पर्वत ही खड़ा हुआ । भरतेश्वरका भाग्य क्या छोटा है ? ___सब लोग भेट समर्पणकर बालकको देखते हुए खड़े थे। भरतेश्वरने कहा कि बेटा ! सब लोग आज्ञा लेने के लिये खड़े हैं। जरा उनको अपने स्थानमें जाने के लिये कहो तो सही ! तब बालकने अपने मस्तक व हाथको हिलाया । तन्त्र सब लोगोंने समझ लिया कि अब जाने के लिये अनुमति दे रहा है । तब भरतेश्वरने कहा कि बेटा ! ऐसा नहीं ! सबको तांबुल देकर भेजो, खाली हाथ भेजना ठीक नहीं। तब सब बच्चेने तांबूलकी थालीको अपने हाथसे फैला दी। सब लोगोंने बहुत हर्ष के साथ तांबुलको ग्रहण किया।
भरतेश्वरने फिर पूछा कि बेटा ! इस सुवर्णकी राशिको किसे देखें।