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भरतेश वैभव
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रहती है, बाकी धनकनक आदिकी इच्छा नहीं । इसलिये मागधामरका उसने यथेष्ट सन्मान किया। साथमें भरतेश्वरने यह कहते हुए कि मागध ! तुम्हारा मंत्री भी बहुत विवेकी है ऐमा हमने सुना है। उसे भी अनेक प्रकारले उत्तम वस्त्र व आभूषणोंको दिये और दोनोंको जानेकी आज्ञा दी गई।
"म्वामिन् ! मैं कल ही लौटकर आऊँगा । तबतक आपकी सेवा में मेरे प्रतिनिधि ध्रुवगति देवको छोड़कर जाता हूँ इस प्रकार कहते हुए मागधने एक देवको सौंपकर चक्रवर्तीको नमस्कार किया, व मंत्रीके साथ चला गया। राजसभाको आनंद हुआ। सब उसीकी चर्चा करने लगे।
भगवन् ! इतने में और एक घटना हुई । राजमहलसे एक सुन्दर दासी दौड़कर आई और हाथ जोड़कर कहने लगी कि स्वामिन् ! आपको पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई है। इस हर्ष समाचारको सुनकर उसे एक मोतीके हारको इनाममें दे दिया । पुनः उस दासीको पासमें बुलाकर धीरेसे पूछा कि कौनसी रानीको पुत्र प्रसूत हुआ है । तब उत्तर मिला कि कुसुमाजी रानीने कुमारको प्राप्त किया है। इतने में सम्राट्ने उसे संतोषके साथ एक हार और दिया। पासके खड़े हुए लोगोंको परम हर्ष हुआ। चक्रवर्ती भी मन ही मनमें संतुष्ट हुए । उस समय भी प्रजाजनोंमें हर्षसमुद्र उमड़कर आया। अनेक तरहके बाजे बजने लगे। इधर-उधरसे आनंदभेरी सुनाई देने लगी। मंदिर वगैरह तोरणसे सुशोभित हुए। लोकमें सब लोगोंको मालूम हुआ कि आज सम्राट्को पुत्ररलकी प्राप्ति हुई है। . सम्राट भी सिंहासनसे "जिनशरण' शब्दको उच्चारण करते हुए उठे एवं दरबारको बरखास्तकर महलमें प्रवेश कर गये । तत्क्षण प्रसूतिगहमें जाकर नवजात बालकको देखा । पासमें ही सो, कुसुमाजी लज्जाके मारे मुख नीचा कर बैठी हुई हैं। बालक अत्यंत तेजस्वी है। उसे भरतेश्वरने देखकर "सिद्धो रक्षत" इस प्रकार आशीर्वाद दिया। फिर वहाँसे रवाना हुए । महल में जहाँ देखो वहाँ हर्ष ही हर्ष है । कुसुमाजी रानीको पूत्ररत्नकी प्राप्ति हुई है, इसपर सभी रानियोंको हर्ष हुआ है। सबने आकर भरतेश्वरके चरणोंमें मस्तक रखकर अपने-अपने आनंदको व्यक्त किया।
बुद्धिसागर मंत्रीने सब देशोंमें दान, पूजा, अभिषेक आदि पुण्यकार्य कराये । भरतेश्वरकी सेनामें सेनापत्तिने अनेक हर्षसूचक मंगल कार्य कराये । भरतेश्वरकी संपत्ति क्या कम है ? मयव्यंतरके द्वारा रचित