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भरतेश वैभव
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द्वारपालक मौजूद हैं। उनकी अनुमतिको पाकर मागधामरने अन्दर प्रवेश किया।
अन्दर जाकर एक दाहे तो वह कसा हो गया । बाहर कोसोंतक व्याप्त हाथी, घोड़े, रथ इत्यादिको देखकर तो उसके हृदयमें आश्चर्य उत्पन्न हो गया था। अब अन्दर अगणित प्रतिभाशाली राजा व राजपुत्र भरतेश्वरकी सेवा में उपस्थित हैं । उन सबके बीच में रत्नमय सिंहासनपर आरूढ़ होकर विराजे हुए भरतेश्वर कुलगिरियोंके मध्य में स्थित मेरुके समान सुन्दर मालूम होते थे। उनके शरीर के रत्नमयआभरण वगैरहके तेजसे वे साक्षात् पूर्वदिशा में उदय होनेवाले सतेज सूर्यके समान मालूम होते थे। भरतेश्वरका सौन्दर्य तो लोकमोहक था । पुरुष देखें भी मोहित होना चाहिए। इस प्रकारकी सुन्दरताको देखकर मागधामर मुग्ध हुआ यह कहें तो फिर जो स्त्रियाँ एकदफे तो देख लेती हैं उनकी क्या हालत होती होगी ?
बीच-बीच में ठहरते हुए और बहुत विनयके साथ स्वामीके पास सेवक जिस प्रकार आता हो मागधामर चक्रवर्तीके पास आ रहा है । चक्रवर्तीने उसके प्रति क्रोधपूर्ण दृष्टिसे देखकर पास में खड़े हुए संधिविग्रहियोंसे पूछा कि क्या यही मागध है ? तब उन लोगोंने उत्तर दिया किं स्वामिन् ! यही मागध है, बड़ा आदमी है, आपके सामने है, देखें । तब चक्रवर्तीने 'अरे मागध ! कल तू बहुत जोशमें आया था न ? गुलाम ! क्या तुम्हें समुद्रमें रहनेका अभिमान है ? अच्छा !" कहा ।
इतनेमें मागधामर डरके मारे काँपने लगा और स्वामिन् ! मेरे अपराधको क्षमा करो। इस प्रकार कहते हुए वह भरतेश्वरके चरणों में गिर पड़ा। चक्रवर्तीको हँसी आई। कहने लगे कि उठो! घबराबो मत । इतने में एकदम उठ खड़ा हुआ ।
'स्वामिन् ! तीन छत्रके धारी त्रिलोकाधिपतिके पुत्रके साथ किसका अभिमान चल सकता है ? हम लोग तो एमें जिस प्रकार मेढक रहता है उस प्रकार पानीके बीच एक द्वीपमें रहते हैं । ऐसी अवस्थामें देव ! आपके तेजको हम किस प्रकार जान सकते हैं। राजन् ! तुम्हारा सौन्दर्य कामदेव से भी बढ़कर है। तुम्हारी प्रसन्नताको पानेके लिए पूर्वजन्मके सुकृतकी आवश्यकता है। हम क्या व्यन्तर तो भूत हुआ करते हैं। भूत क्यों भ्रांत हैं ! ऐसी अवस्थामें हम तुम्हारे महत्त्वको क्या जानें ? इस लोकमें एक छोटीसी नदी समुद्रकी हंस की निन्दा करे और मागघ भरत चक्रवर्तीकी निन्दा करे तो क्या
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निन्दा करे, उल्लू