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भरतेश वैभव
ऐसी अवस्थामें अब इस भूमिकी प्रदक्षिणा देकर सर्व राजाओंको वशमें करें।
स्वामिन् ! आप जंबूद्वीपके दक्षिणभागमें सुर्यके समान हैं । अनेक द्वीपोंमें मदोन्मत्त होकर रहनेवाले राजसमूहोंको अपने चरणरजस्पर्श से पवित्र करें । राजन् ! गिरिदुर्ग, जलदुर्ग और वनदुर्ग में जो अहंकारी राजा हैं उनके अभिमानको मर्दनकर भरतषट्खण्डको वशम करें जिमसे आपका भरत नाम सार्थक हो जायेगा।
जहाँ जहाँ उत्तम पदार्थ हैं वह सब आपको भेंट करनेके लिये लोग प्रतीक्षा देख रहे हैं। उन सबकी इच्छाको पूर्ति करते हुए आप देश-देशकी शोभा देखें। दूर-दूर देशके जो राजा हैं उनके घरमें उत्पन्न कन्यारत्नोंकी भटको ग्रहणकर लीलाके साथ विहार करनेका विचार करें। अब देरी क्यों करते हैं ? राजन् ! छह खण्डकी प्रजा आपके दर्शनके लिये तरस रही है। उनको आपके रूपको दिखाकर कृतार्थ करें। जिस प्रकार बनमें मंमार को संत सेनाको बढ़ाता है उसी प्रकार आप अपने विहारसे इस भूतलकी शोभाको वढावें।
बुद्धिसागर मंत्रीके समयोचित निवेदनपर राजाको बड़ा हर्ष हुआ। मंत्री के कर्तव्यपालनके प्रति प्रसन्न होकर भरतेशने बुद्धिसागरको अनेक वस्त्र व आभूषणोंको भेंटमें दिये और यह भी आज्ञा दी कि दिग्विजय प्रयाणकी तैयारी करो। सब लोगों को इसकी सूचना दो। बुद्धिसागरने प्रार्थना की स्वामिन् ! नौ दिनतक जिनेन्द्र भगवन्तकी पुजा वगैरह उत्सव बड़े आनन्दके साथ कराकर दशमीके रोज यहाँसे प्रस्थानका प्रबन्ध करूँगा।
इस प्रकार निवेदनकर वहाँ से अपने कार्यमें चला गया ।
अयोध्यानगरके जिनमन्दिरोंकी मंत्रीकी आज्ञासे सजावट होने लगी । बाजारों में भी यत्र-तत्र उत्सत्रकी तैयारी हो रही है । सब जगह अब दिग्विजय प्रयाण की चर्चा चल रही है। ___मन्दिरोंकी ध्वजपताका आकाश प्रदेशको चुम्बन कर रही थी तब उस नगरका नाम साकेतपुर सार्थक बन गया । ___ अयोध्यानगरके बड़े-बड़े राजमार्ग अत्यन्त स्वच्छ किये गये थे एवं सुगंधित गुलाबजल आदिसे उनपर छिड़काव होनेसे सर्वत्र सुगन्ध हो सुगन्ध फैला था, उस सुगन्धके मारे भ्रमर गुंजार कर रहे थे ।