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भरतेश वैभव अयोध्या नगरीमें अगणित जिन मन्दिर थे, उनमें कहीं होम चल रहा है। कही मुनिदान चल रहा है। इस प्रकार उस समय वह पुण्यनगर बन गया था। किमी मन्दिर में बज्रपंजसराधना कर रहे हैं । कहीं बालिकंड यंत्राराधना हो रही है। कहीं गगधर वालययन और मृत्युंजय यज चल रहा है। इतना ही क्यों ? किननेही मन्दिरोंमें बलसिद्धि, जयसिद्धि व सर्वरक्षा नामक अनेक यज्ञ वहत विधिपर्वक हो रहे हैं।
नित्य ही अनेक धर्मप्रभावनाके कार्य ब नित्य ही रथयात्रा महोत्सव, महाभिषेक, पूजा चतुस्संघसंतर्पण आदि कार्य बुद्धिसागर मंत्रीकी प्रेरणासे हो रहे है। जिन पूजापूर्वक नौ दिनतक बराबर चक्ररनकी भी पूजा हुई । माथमें सेनाके अन्य योद्धाओंने भी अपने-अपने शस्त्र-अस्त्रों की अनुरागसे पूजा की। __ गोमुख यक्ष व चक्रेश्वरी यक्षिणीकी पूजा कर घोड़ेको रक्षक यंत्र का बन्धन किया। घोड़े को यक्षदेवताके नामसे कहनेकी पद्धति है। वह इसलिए कि उस समय बुद्धिसागरने यक्ष व यक्षिणी की पूजा कर उसको रक्षित किया था। इसी प्रकार हाथी, रथ वगैरहका श्रृंगार कर बहुत वैभव किया। सारांशतः महानवमीके नौ दिनके उत्सवको मत्रीने जिस प्रकार मनाया उससे गरलोकको आलम हुआ।
नवमीके दिन की बात। दिनमें भरतेश नगरके बीचके जिन मन्दिरमें जाकर पूजा महोत्सव देख आये हैं। रात्रिके समय दरबारमें आकर विराजमान हुए। भरतेश मस्तकपर रत्नकिरीटको धारण किये हए हैं। उसके प्रकाशसे रात्रि भी दिनके समान मालम हो रही है ।
भरतेश बीचके सिंहासनपर विराजे हुए हैं। इधर-उधरसे मंत्री, सेनापति, सामन्त वगैरह बैठे हुए हैं। सामने अगणित प्रजा बैठी हुई है। इनके बीच में अनेक विद्वान् कवि, गायक वगैरह भी उपस्थित हैं।
राजा भरतको देखनेके लिये ही लोग तरसते हैं। इसलिये झुंड के झुंड आकर वहाँ जम रहे हैं। __काकीनी रत्नको एक खंबेके महारे खड़ा कर दिया गया। एक कोस नक बराबर अन्धकार दूर होकर प्रकाश हो गया। इतना ही क्यों ? अयोध्यानगरीका विस्तार १२ कोसका है। अयोध्या नगरीमें सब जगह प्रकाश ही प्रकाश हुआ। __ उस विशाल दरबारमें कहीं डोंबर लोग, कहीं गानेवाले, कहीं ऐंद्रजाली, कहीं महेन्द्रजाली, इत्यादि अनेक तरहके लोग अपनी-अपनी कला प्रदर्शन करनेकी इच्छासे वहाँपर एकत्रित हुए थे।