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भरतेश वैभव
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भरतेश के सौदर्यका क्या वर्णन करें ? जिन स्त्रियोंने भी वहांपर उनको देखा तो सब अपने को भूल गई थी और बराबर स्तब्ध पुतलीके समान खड़ी थी ।
अधिक क्या ? जिनके बाल सोलह आने पक गये हैं ऐसी बुढ़ियाँ श्री भरतेशको देखकर हक्का-बक्का हो गई एवं आधे मुँह खोलकर देखने लगीं एवं भ्रमित होकर दिवाल के सहारे टिक गईं तो तरुणियोंकेहृदयमें किस प्रकारके बिचारका संचार हुआ होगा यह पाठक ही कल्पना करें ।
स्त्रियों भरतेशको देखकर भरतेशके प्रति मोहित हो गईं, इसमें आश्चर्य हो क्या है ? वहाँके नगरवासी पुरुष भी भरतेशके सौंदयंसे मन हारकर भ्रांत हुए। ऐसी हालत में स्त्रियोंकी तो बात ही क्या है ? उनका तो हृदय स्वभावतः ही कोमल रहता है ।
स्त्रियाँ सब भरतेशको बहुत ही चाहते देख रही हैं। परन्तु भरतेश की दृष्टि गजरत्न के गण्डस्थलकी ओर है, वे इधर-उधर देख नहीं रहे है । यह गम्भीरता भरतेशने कहाँ सीखी होगी ? जिस महापुरुषने तीन लोकमें सारभूत श्री चिदंबरपुरुष परमात्माके अतुल भयका दर्शन किया है, क्या उसका चित्त इधर-उधर के क्षुद्र विषयोंसे क्षुब्ध हो सकता है ? कभी नहीं। इसलिये भरतेश भी मदगजके ऊपर बहुत गम्भीरतासे आरूढ़ होकर जा रहे हैं ।
करोड़ों पात्रोंका शृङ्गार होकर आगेसे वे नृत्य करते हुए जा रहे हैं एवं स्तुतिपाठक अनेक सुन्दर शब्दोंसे स्तुति करते हुए जा रहे हैं । आदिजिनपुत्र ! कामदेवाग्रज ! भरतषट्खण्डअधिनाथ ! गुरुहंसनाथभावक ! तुम्हारी जय हो । समस्त भूपतियोंके पति ! अहंकारी व विरोधी राजगणरूपी जंगलके लिये दावानल ! प्रतिस्पर्धा करनेवाले राजगिरिके लिये वज्रदण्डके रूपमें रहनेवाले हे राजन् ! आपकी जय हो ! राजन् ! लोकमें अनेक राजा ऐसे हैं जो अपने कर्तव्यको नहीं जानते हैं । उनकी वृत्ति उनको शोभित नहीं होती है । आत्मकला व विवेक उनमें नहीं है। फिर भी बाह्यरचनाओंसे अपनी प्रशंसा करा लेते हैं। ऐसे राजाओंके ऊपर भी आप अपने आधिपत्य रखते हैं ।
संपति, शील, सेज, आज्ञा, प्रभुत्व, वीरता आदि गुणोंमें, इतना ही क्यों त्याग और भोग में आप इस तरलोकमें सुरपति के समान हैं। आपकी जय हो ! इत्यादि अनेक प्रकारसे भरतेशकी स्तुति हो रही है।