________________
भरतेश वैभव
१२७
यहाँ पद्मिनी के साथ जिस प्रकार भरतेश्वरने क्रीडाकी उसी प्रकार अन्य सर्व रानियों के साथ भी राजमोही भरत क्रीड़ा कर रहे हैं। सब जगह उनका वैक्रियिक शरीर काम कर रहा है ।
स्त्रियोंमें मग्धा, बाला, विदग्धा प्रगल्भा आदि नामसे अनेक भेद हैं। उनकी रुचि भी अलग-अलग प्रकारकी है । बालाको प्रेमसे, मुग्धाको मरसालापसे, मध्यमाको खिलाकर और प्रगल्भाको काम प्रचोदनासे वश करना पड़ता है । उस प्रकार भरतेशने सबको आनन्दित किया ।
इसके अलावा स्त्रियों में हस्तिनी, चित्रिणी, पद्मिनी, शंखिनी आदि अनेक भेद हैं। कोमल संगमसे पद्मिनी, कठिन संगमसे शंखिनी, मध्यम रति चित्रिणी और मन्द रतिसे हस्तिनी स्त्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं। उन सब कलाओंको जानकर भरतेश्वरने उनको संतुष्ट किया ।
कोई शरीर से मोटी है तो कोई पतली है, कोई मध्यम है, उन सब - को उपायसे आलिंगन देकर भरतेश्वरने तृप्त किया ।
स्थूल स्तनों को दृढ़ हस्तावलंबन से, कलश कुचोंके बीच मुख रखकर, उन्नतस्तनोंको नानाप्रकारसे मर्दन कर एवं कोमल स्वनोंको थपथपाकर उनका संसर्ग किया ।
विशेष क्या कहें? लाट देशकी स्त्री, काश्मीर देशकी स्त्री, कर्नाटक देशकी स्त्री, भोट महाभोटकी स्त्री इन सबकी मनोकामनाको जानकर उस प्रकार सन्तुष्ट किया ।
तु देशकी तरुणी, मलयाळ देशकी युवती, बंगाल देशकी कांता, गौळ देशकी नारी, सिंहल देशकी वधू, इन सबकी मनोकामनाको जानकर तृप्त किया ।
भरतेश के अन्तःपुर में नाना देशकी स्त्रियाँ हैं । अंग देशकी स्त्रियोंका अंगलावण्य जानकर, कलिंग देशकी स्त्रियोंकी कला अवगत कर एवं वंग देशकी स्त्रियोंकी रीतिसमझकर वह प्रेमी उनसे प्रेमसे मिला ।
जो रानी बोलनेमें चतुर है उसके साथ बोलते हैं, जो कम बोलती है उसके साथ मौनसे क्रीड़ा करते हैं । रतिकला जिसे अच्छी तरह मालूम है उसके साथ बड़ी प्रसन्नता से क्रीड़ा करते हैं और जिसे रतिकला नहीं आती है उसे वे सिखाते हैं वे स्त्रियों परवश होती हैं । मूर्च्छित होती हैं। जागृत होती हैं। उन सबको समयोचित व्यवहारसे वे सन्तुष्ट कर रहे हैं । काममय दृष्टि, शृङ्गारपूर्ण वचन, नखहति, दन्तहृति आदि कामप्रचोदन कर उनको नवरति नाटकका दृश्य उन्होंने
बताया ।