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भरतेश वैभव
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विनोद, विलास में हास्य - व्यवहार करते हुए जा रहे हैं, अपने स्वतः के नाना रूप बनाकर अलग-अलग स्त्रियोंके साथ वे विनोद वार्तालाप कर रहे हैं । एक स्त्रीके साथ एक पुरुष जिस प्रकार जा रहे हों, उसी प्रकार हजारों स्त्रियोंके साथ भरतेश्वर जा रहे हैं तथापि वहाँपर सौत-मत्सर नहीं है, कारण कि किसी भी रूपसे क्यों न हो पुरुषोत्तम भरतेश्वर उनके साथ हैं। मूल शरीर पद्मिनीके साथ है। बाकीके शरीर पंक्तिबद्ध होकर इतर स्त्रियोंके साथ है। इस प्रकार बड़े आनन्दसे उन सुन्दरी स्त्रियोंके साथ शय्यागृह में प्रवेश किया । वह शय्यागृह विशिष्ट शृंगार- विलास साधनोंसे सुसज्जित है । बहाँपर सुवर्णमंत्र, माणिकमंत्र, श्रीगन्धमंत्र, रजतमंत्र, पंचरत्तमंत्र, नवरत्न मंत्र आदि पलंग दिख रहे हैं। विशेष क्या? नूतन श्रृंगार नगर के समान ज्ञात हो रहा है । जगह-जगह पर आमोद-प्रमोद के साधन रखे हुए हैं । कहीं गुलाबजल, कहीं कस्तूरी, कहीं श्रीगन्ध, कर्पूर आदि सुगन्ध द्रव्य हैं तो कहीं पंखा. तांबूल, पलंग, दुध, पानी आदि पदार्थ विद्यमान है। नवरत्ननिर्मित उस शय्यागृहका विशेष वर्णन क्या करें ? सर्व विलामकी सामग्री वहाँपर तैयार है, इतना कहना पर्याप्त है । उक्त सर्व शृंगारसहित शय्यागृह में सुसज्जित सिंहवाहिनी नामक पलंगपर भरनेश्वर विराजमान हुए । सर्व स्त्रियोंने अपने पहिलेके वेषभूषाओंको बदलकर शय्यासमयोचित वस्त्रोंका परिधान किया। अब अनेक प्रकारसे शृंगार विनोद करनी हुई भरतेश्वर के पास बैठी हुई हैं। भरतेश्वरने नानारूप धारण किया है। हर एक रानीके साथ एक-एक भरत है। मूल भरत पद्मिनीक साथ हैं। आज पद्मिनीको प्रसन्न करने उन्होंने निश्चय किया है । पद्मिनी नाना प्रकारके श्रृंगार-व्यवहार कर भरतेश्वरको कामप्रतोदना करने में उद्यत है। मरनेश्वर अमृत मानके लिए आह्वान रही है । अपने सुन्दर मुख देखने के लिए प्रेरित कर रही है । परन्तु भरतेश्वर आँख मींचकर बैठे है ।
प्राणनाथ ! नेत्र बोलियेगा | हृदयेश्वर ! मुझमे बोलो। मुझे आनन्द दीजिये | बड़े प्रेमसे पति के चेहरेपर हाथ फेरती हुई पद्मिनी बोल रही है। तोते समान बोलती है, लता के समान आलिंगन दे रही हैं, नदीके समान इधर-उधर हिलाकर आंख खोलनेके लिए विनती कर रही है ।
इस प्रकार नानाविधिसे भरतेश्वरको आकृष्ट करनेका प्रयत्न होनेपर भी भरतेश्वर अपने आत्मविचारमें मग्न हैं। क्या आश्चर्यको बात