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भरतेश वैभव
१५५ उनको तो आत्मयोगकी प्राप्ति नहीं होती, जिनको उसकी प्राप्ति होती है उनकी वे अभव्य निन्दा करते रहते हैं । कभी किसीने उन्हें उस विषयको समझाया भी तो उनसे विसंवाद करते हैं कि यह ध्यान स्त्रियों को प्राप्त नहीं हो सकता है | गृहस्थोंको प्राप्त नहीं हो सकता है। इत्यादि।
देवी ! शास्त्रोंमें कहा है कि स्त्रियोंको व गृहस्थोंको शुक्ल ध्यान की प्राप्ति नहीं हो सकती है परन्तु ये अज्ञानी लोगों को भड़काते हैं कि इनको धर्मध्यान भी नहीं हो सकता है। व्यबहार धर्मको तो ये मानते हैं, परन्तु निश्चय धर्मको ये स्वीकार नहीं करते हैं।
देवी ! उन्हें कोई ध्यान शास्त्रका उपदेश देने जाये तो कई प्रकार का बहाना करते हैं और कहते हैं कि आत्मयोगको धारण करनेके लिये बहुतसे शास्त्रोंके अध्ययन करनेकी आवश्यकता है और निर्गन्य दीक्षाकी भी आवश्यकता है । ये बातें हममें नहीं हैं। इसलिये हम इस आत्मयोगको धारण नहीं कर सकते । परन्तु देवी ! आश्चर्य है कि वे बहुतसे शास्त्रोंका पटनकर, निम्रन्थ दीक्षासे दीक्षित होनेपर भी वे संसारमें भटकते रहते हैं।
देवी ! आत्मध्यान अपनेसे हो सके तो अवश्य करना चाहिये, यदि उतनी शक्ति न हो ध्यानतत्वपर श्रद्धान तो अवश्यमेव करना चाहिये । केवल अपनेसे नहीं बने, तो ध्यानकी निन्दा करते रहना अभव्योंका कार्य है । इमलिये आप लोग इसपर अच्छी तरह श्रद्धान करो। आप लोगोंको ध्यानका उदय न होवे, तो भी कोई हानि नहीं है । मन्तोषके साथ भेदभक्तिका अभ्यास करती रहो, उसीमे आगे जाकर तुम लोगोंको मुक्तिकी प्राप्ति होगी। भगवन् पूजा, मुनिदान शामन-देवतासत्कार, जीवदया आदि सक्रियाओंका अनुष्ठान करो और आत्मकलापर श्रद्धान करो । आप लोगोंको अवश्य आगे मोक्षकी प्राप्ति होगी।
देवी ! जिस समय सूतक काल है या मासिक धर्म सदृश अशुभ समय है, उस समय उपयुक्त शुभक्रियाओंका आचरण करना उचित नहीं है। उस समय अशुचित्वानुप्रेक्षाकी भावना करती हुई मौनसे रहना चाहिये।
इस प्रकार आप लोग उपर्युक्त कथनानुमार आचरण करेंगी तो आप लोगोंका यह स्त्रीवेष दूर हो जायेगा और स्वर्गको पाकर अवश्य मुक्तिको भी प्राप्त करेंगी। यह सिद्धांत है, इसे अवश्य श्रद्धान करो।
इस प्रकार सम्राट् भरतेशके उपदेशको सुनकर ज्योतिर्माला आदि