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भरतेश दैभव सूर्यदेवसे रहा नहीं गया, मैं जल्दी जाकर आत्मयोगी भरतका दर्शन करूँगा एवं उसकी पारणा कराऊँगा इस विचारसे वह शीघ्रगतिसे अपने रथको चलाते हए उदयाचलपर आरूढ़ हो गया। उस समय उसके आगमनकी सूचना जिनमंदिरके उन्नत शिखरके कलशपर पड़े हुए अरुणकिरण दे रहे थे।
भरतेशके रानियोंने आकर प्रार्थना की, स्वामिन् ! अब सुर्योदय हो गया है, अब तो आप आँख खोलने की कृपा करें । सम्राट्ने अंतरंगमें ही शांतिभक्तिका पाठ किया एवं चिदंबरपुरुष परमात्माको नमस्कार कर शांतभावसे आँखें खोलीं।
उसी समय रानियोंने आकर सविनय नमस्कार किया। उनको आशीर्वाद देते हुए सबके साथ वे स्नानगृहमें गये । वहाँ योगस्नान कर जिनमंदिरको चले गये। __ सबसे पहिले मंदिरमें शासनदेवताओंको अर्घ्य प्रदान कर श्री भगवंतका स्तोत्र व जप किया, तदनन्तर अपनी देबियोंके साथ श्री जिनेंद्र भगवंतकी पूजा की।
जल, गंध, अक्षत, पुष्प, चरु, दीप, धूप, फल व अय॑के साथ जिस समय भरतेश्वर भगवानकी पूजा कर रहे थे, उस समय वह जिनमंदिर अनेक मंगल-बाघोंसे गंज रहा था ।
उन्होंने अर्ध्यप्रदानके बाद शांतिधारा छोड़ी एवं अनेक अनर्घ्य रत्नोंसे जयजयकार शब्दके साथ पुष्पांजलि वृष्टि की।
तदनंतर भरतेशने अपनी देवियोंके साथ गंधोदकको अत्यंत आदरके साथ ग्रहण किया। भगवान के सामने खड़े होकर कहने लगे कि कल हमने जो व्रत लिए उनकी पूर्ति हुई, अब हम उन व्रतोंका विसर्जन करते हैं। इस प्रकार कहते हुए उनके पहिले दिनके बँधे हुए व्रतककणको उतारकर वहाँपर रखा । इसी प्रकार सब स्त्रियोंने भी कंकण उतार दिया । तदनंतर भरतेशने अपनी स्त्रियोंके मुखको ओर देखा।
कुछ स्त्रियोंके मुम्ब प्रसन्न दिख रहे हैं और कुछ स्त्रियोंके मुख म्लान दिख रहे थे । भरतेश्वर समझ गये कि जिनके मुख म्लान हुए हैं, वे स्त्रियाँ प्रथम उपवासवाली हैं। उनको उपवास करनेका अभ्यास नहीं। जिनको पहिलेसे उपवास करनेका अभ्यास था उन स्त्रियोंका मुख प्रसन्न दिख रहा था। भरतेश अपने मन ही मन विचार करने लगे कि हा ! इन बेचारी स्त्रियोंने उपवासवतको सरल समझकर ग्रहण किया, परन्तु इनको कष्ट मालूम होता है । तदनंतर प्रकट रूपसे कहने