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भरतेश वैभव ___ शक्कर, फल आदिसे उन्होंने जो अभिषेक किया उन्हें परिवारस्त्रियाँ उसी समय उठाकर ले गईं, नहीं तो उनसे बड़े पहाड़ भी ढक जाते। गृहपति नामक रत्न अनेक प्रकारके पदार्थोंको लाकर देता था तन्त्र फिर भला क्या देरी लगती है ? __भगवान के जन्माभिषेक कल्याणमें स्वर्गके देवोंने क्षीरसमुद्रको लाकर अभिषेक किया था। आज मम्राट्ने क्षीर, इक्षु, दधि, घत इस प्रकार चार समुद्रोंको लाकर अभिषेक किया। क्या इस प्रकारका भाग्य देवोंको मिल सकता है ? ___इस प्रकार पंचामृताभिषेक अन्यन्त भक्ति, विनय तथा मंत्रोच्चारण विधिपूर्वक करने के बाद मम्राट्ने नाजांग वर्ण व कुंकुमचर्णसे अभिषेक किया। तदनंतर अत्यन्त पुगन्धित नवीषधिसे अभिषेक किया। मुबौंषधि अभिषेक करनेके बाद करोड़ कुम्भोंमें चंदन भरकर अभिषेक किया एवं करोड़ों कुम्भोंमें गुलावा भरपर अधिक कि
तदनन्तर पूर्ण कुम्भको उठाकर सर्व लोकमें शांति हो इस प्रकार शुद्ध उच्चारणपूर्वक शांनिमन्त्र पढ़कर पूर्ण कुम्भाभिषेक किया । बादमे १०८ कलशोंसे भरे हुए अनेक वर्णके पुष्पोंकी वृष्टि की। उस समय सभी भव्यगण जयजयकार करने लगे। ___ इसके सिवाय सोना, चाँदी व रत्नोंसे निर्मित पुष्पोंकी भी वृष्टि की । जयजयकार शब्दसे मन्दिर गंज उठा।
सदनन्तर अत्यन्त भक्तिसे अष्टविधार्चन पूजन की । विधिपूर्वक पूजा करने के पश्चात् १०८ प्रफुल्लित कमलोंसे मंत्र पुष्प (जाप) कर साष्टांग नमन किया। उसी समय बाद्यपाषं बंद हुआ।
उस मन्दिरमें अत्यन्न बुद्ध पूजेन्द्र पूजक था, उसे मम्राट्ने सूचना दी। उसने अनेक मन्त्र ब विधिपूर्वक जिनेन्द्र भगवान्के व शासनदेवताओंकी पूजा की, सम्राट् बड़े-खड़े देख रहे थे।
पूजा व अभिपंको समय सम्राट्ने अपने अनेक रूप बना लिये थे । अब उन्होंने मत्रको अवश्य कर एक बना लिया, एवं वहाँसे तपोधनोंके पाममें आकर अपनी बामणियोंके. साथ उनके चरणोंमें नमोस्तु किया । आचार्य परमेष्ठिने भरतेशको "परमात्मसिद्धिरस्तु" एवं अन्य मुनियोंने 'धर्मवृद्धिरस्तु" आशीर्वाद दिया। __ अभीतक भरतेशने इधर-उधर नहीं देखा था, उनका एकमात्र चित्त श्री भगवान्की सेवामें लगा हुआ था । अब उन्होंने अपनी दुष्टि फेरकर पूजा व अभिषेक दर्शनार्थ आये हुए भव्योंको देखा ।