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भरतेश वैभव भीतर पहुँचनेपर सम्राट्ने पिंजड़ेम टॅगे हुए एक तोतेको देखा। चक्रवर्तीको देखकर तोता कहने लगा कि बहिन ! हमारे महलमें भावाजी आ गये हैं। उनको विराजमेके लिए सिंहासन तो मँगावो । उनका सत्कार करो।
वहाँ एक सिहासन तैयार रखा हुआ था । 'क्या इसीका नाम अमृतवाचक है ?' ऐसा पूछकर सम्राट उस सिंहासनपर बैट गये।
बह तोता कहने लगा कि भावाजी! आप पधारे ? आप बड़े गुणवान् हैं। आप यहाँ आये, सो बहुत अच्छा हुआ। भाबाजी ! आप कुशल से तो हैं ? आप क्यों नहीं आते हैं ? क्या आपको राजा होनेका अभिमान है ? नहीं तो हमारी बहिनके महलमें क्यों नहीं पधारते? अस्तु आज आ गये मेरे दिमें आ गये। अब देखता हूँ कि आप किस प्रकार निकल जाते हैं।
तोतेकी बात सुनकर भरतेश्वरको हंसी आई।
तब तोता बोलने लगा कि भावाजी ! आपको हँसी आ रही है । आप अभीतक दूर थे, अब आप पासमें आ गये हैं, अब देखिये कि मेरी बहिन आपको हँसी में कैसे फंसाती है । मेरी बहिनके दोनों हाथ फसेके समान हैं। अब मैं देखता हूँ कि उस फॉसेरो करो बच करके जायेंगे। प्रेमसे कुसुमाजी बहिनके साथ रहना हो तो रहिये। यदि निकलकर जाना चाहोगे तो बहिनके नेत्रकटाक्षरूपी चाँदीके साँकलोंसे बँधवा डालूंगा । मैं तो पिंजड़े में बन्द हूँ। यदि जानेका प्रयत्न किया तो बहिन की दंतपंक्तियोंके प्रकाशरूपी सोनेके पिंजड़ेमें तुमको भी बन्द करके रखवा दंगा, जान लिया ?
"अमृतवाचक ! तुम्हें और तुम्हारी बहिनको मैंने कौन-सा कष्ट दिया जो इतना क्रोध करते हो ! तुम लोगोंको मैं शिष्ट समझकर यहाँ आया हूँ, परंतु तुम दोनों दुष्ट मालम होते हो । भरतेशने कहा ।
राजन् ! आपको मेरी बातोंसे दुःख हुआ ? अच्छा, कोई बात नहीं। अब तुम हमारी महल में बहिनके अधरसे जीवन-अमृत को पीते हुए जीबसिद्धिको पावो। अब तो मेरी बातें अच्छी लगती हैं न ? मेरे लिए जामुनका फल जंगल में है। तुम्हारे लिए जामुन बहिनके मुखमें है। मैं जंगलमें जा करके खाता हूँ। तुम यहीं पय खाकार सुखी रहो। बहिनका मध्य सिंहल देश है। केशबन्धन कुंतल देश है । कर्ण कर्नाटक देश है। कुच काश्मीर देश है, इसलिए बहिनके शरीररूपी राज्यका पालन करो। यहाँसे क्यों जाते हो? और भी सुनो ! उसका यौवन