Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १२ : उ. ५,६ : सू. ११७-१२३
भगवती सूत्र औदारिक-शरीर यावत् तैजस-शरीर-ये आठ स्पर्श वाले हैं। कर्म-शरीर चार स्पर्श वाला है। मन-योग और वचन-योग चार स्पर्श वाले हैं। काय-योग आठ स्पर्श वाला है।
साकारोपयोग और अनाकारोपयोग वर्ण रहित हैं। ११८. भंते ! सर्व-द्रव्य कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! कुछ सर्व-द्रव्य पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कुछ सर्व-द्रव्य पांच वर्ण यावत् चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कुछ सर्व-द्रव्य एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कुछ सर्व-द्रव्य वर्ण-रहित यावत् स्पर्श-रहित प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार सर्व-प्रदेश और सर्व-पर्याय की वक्तव्यता। अतीत-काल वर्ण-रहित यावत् स्पर्श-रहित होता है। इसी प्रकार
अनागत-काल और सर्व-काल की वक्तव्यता। ११९. भंते ! गर्भ में उपपन्न होता हुआ जीव कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श के परिणाम से परिणत होता है। गौतम ! पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श के परिणाम से परिणत होता है। १२०. भंते ! क्या जीव कर्म से विभक्ति-भाव (नरक, मनुष्य आदि भव) में परिणमन करता है, अकर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन नहीं करता ? क्या जगत् कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है ? अकर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन नहीं करता ? हां! गौतम ! जीव कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है, अकर्म से नहीं, जगत् कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है, अकर्म से नहीं। १२१. भंते ! वह ऐसा हो है। भंते ! वह ऐसा ही है।
छठा उद्देशक
चंद्र-सूर्य-ग्रहण-पद १२२. राजगृह नाम का नगर यावत् इस प्रकार बोले-भंते ! बहुजन परस्पर इस प्रकार
आख्यान यावत् प्ररूपणा करते हैं-राहु चंद्र को ग्रहण करता है, राहु चंद्र को ग्रहण करता है। १२३. भंते ! यह कैसे है? क्या ऐसा है?
गौतम ! जो बहुजन परस्पर इस प्रकार का आख्यान यावत् प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! मैं इस प्रकार का आख्यान यावत् प्ररूपणा करता हूं-इस प्रकार राहु-देव महान् ऋद्धिवाला यावत् महान् ऐश्वर्यशाली के रूप में प्रख्यात, प्रवर-वस्त्र-धारक, प्रवर-माल्य-धारक, प्रवर-गंध- और प्रवर-आभरण-धारी होता है। राहु-देव के नौ नाम प्रज्ञप्त हैं, जैसे शृंगारक, जटिलक, क्षत्रक, खरक, दर्दुर, मकर,, मत्स्य, कच्छप और कृष्णसर्प। राहु-देव के विमानों के पांच वर्ण प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत।
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