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आप्तवाणी-२
रिलेटिव धर्म हैं, स्टेन्डर्ड वाले धर्म हैं। व्यू पोइन्ट के धर्म हैं। जिसे जिस व्यू पोइन्ट से दिखा, वही सच्चा मानकर बैठ गए और उसी पक्ष में पड़ गए। मोक्ष कब होता है? केवलदर्शन कब होता है? सच्चा समकित, सम्यक्दर्शन कब होता है? सारे जगत् में कहीं भी, किसी के भी साथ पक्षपात नहीं रहे, मतभेद नहीं रहे, तब! पक्ष में पड़े हुओं का मोक्ष नहीं होता। पक्ष किसलिए बनते हैं? अहंकारी अपना अहंकार को पोषण देने के लिए पक्ष बनाते हैं और निरहंकारी 'ज्ञानीपुरुष' सब को एक करते हैं। 'ज्ञानीपुरुष' निष्पक्षपाती होते हैं, 'वीतराग' निष्पक्षपाती होते हैं। किसी जाति-पाँति के साथ पक्ष नहीं। संपूर्ण निष्पक्षपाती। हर एक इंसान के साथ अभेदता! अरे! एक छोटे से छोटा जीव हो, तो उसके साथ भी 'वीतराग' को अभेदता रहती है!
ये सभी तो पैकिंग हैं। वेराइटीज़ ओफ पैकिंग्स् हैं और भीतर आत्मा है, मटीरियल है। मटीरियल सबमें समान है। लेकिन पैकिंग के डिफरेन्स से भेदबुद्धि खड़ी हो गई है। 'ज्ञानीपुरुष' पैकिंग नहीं देखते, वे तो निरंतर मटीरियल ही देखते हैं, सामनेवाले के आत्मा को ही देखते हैं। उनकी आत्मदृष्टि ही होती है। इस पैकिंगवाली दृष्टि से ही पक्षपात है और उसी से संसार खड़ा है। पक्ष में रहकर तो पक्ष की नींव मज़बूत करते हैं। अरे! तुझे मोक्ष में जाना है या पक्ष में पड़े रहना है? मोक्ष और पक्ष, वे दोनों संपूर्ण विरोधाभासी हैं। भगवान निष्पक्षपाती हैं, जबकि लोग पक्षपात में पड़े हैं! जैन कहेंगे, ‘इतना हमारा है और वह हमारा नहीं है, वह तो वैष्णवों का है'। जबकि मुस्लिम कहते हैं, 'यह हमारा है, वह हमारा नहीं है, वह तो हिन्दुओं का है'। इस तरह सभी धर्मोंवाले पक्ष में पड़े हैं। यहाँ सभी धर्मों के खुलासे होते हैं। हर एक धर्मवाले को यहाँ पर खुद का ही धर्म लगता है। क्योंकि हम निष्पक्षपाती हैं। उन सभी धर्मों का संगम यहीं पर
लोग पक्ष में पड़े, उससे भगवान बल्कि दूर हो गए। उसमें भी फिर एक धर्म में कितने ही पक्ष बन गए हैं। इन जैनों में भी चौरासी गच्छ बन गए हैं और वेदांतियों में भी कितने ही पंथ बन गए हैं। जैन धर्म तो किसे