________________
२६४
आप्तवाणी-२
दादाश्री : तप और क्रिया से फल मिलते हैं, मुक्ति नहीं मिलती। नीम बोएँ तो कड़वे फल मिलते हैं और आम बोएँ तो मीठे फल मिलते हैं। तुझे जैसे फल चाहिए, तू वैसे बीज बोना। मोक्ष प्राप्ति का तप तो अलग ही होता है, अंतरतप होता है।
___ मोक्ष के चार स्तंभ हैं - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। कुछ लोग बिना समझे उसमें से सिर्फ तप का ही स्तंभ पकड बैठे हैं। जैसे पलंग के चार पैरों में से एक पैर पकड़ते हैं, वैसे इस तप को पकड़ लिया। देह को नहीं तपाना है, मन को तपाना है और वह भी इस तरह कि बाहर कोई जान नहीं पाए लेकिन आज तो सिर्फ बाह्य तप ही करते हैं यानी जो स्टेशन आया, उसी को पकड़ लिया। बाह्य तप से बाप जी को फल क्या मिला? देह तेजस्वी हो गई। देह को तपाया, तो वह देह प्रकाशमान हो जाती है, लेकिन क्या देह साथ में आनेवाली है? वह तो जला देनी है। जब तक यह देह है, तब तक खुद का ही काम निकाल लेना है। त्यागवालों ने त्याग की कसरत की। ये सभी कसरतशालाएँ हैं। उससे आत्मा के लिए कुछ भी नहीं होता। कुछ भी उपकार नहीं होता। पत्नी के बिना जी सकते हैं या नहीं, जिसने उसकी कसरत की, वह पत्नी को छोड़कर भाग जाता है। पत्नी बारह महीने के लिए पीहर नहीं जाती? यानी कि घर पर भी जीया जा सकता है न, किसलिए भाग जाते हैं? माँ, बेटे के पापा के साथ रोज़ झगड़ा करती है, तो बेटा गाँठ बाँध लेता है कि, 'अब ऐसा नहीं होना चाहिए, पत्नी नहीं होनी चाहिए,' ऐसी मजबूत बाँधी हुई गाँठ फिर उदय में आती है, फिर वह भाग जाता है। उसके बजाय तू यह सहन कर न! इस प्राप्त तप को सहन करते-करते मोक्ष में जा पाएगा। प्राप्त दुःख, उसे तो इनाम कहते हैं। भले ही फिर वह सहन करना पड़े, लेकिन कुछ गया तो नहीं न? अपने को कुछ मिला तो वह इनाम ही कहलाएगा न?
तप और त्याग करते हैं वह तो विषय है, सब्जेक्ट्स हैं। उससे मात्र हिम्मत बढ़ानी होती है। तप से शरीर में शक्ति है ऐसा पता चलता है, लेकिन 'त्यागे सो आगे,' जिसका त्याग किया, वह अनंतगुना होकर सामने