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अणुव्रत- महाव्रत
ही नहीं आते। लक्ष्मी और विषय का हमें विचार ही नहीं आता, लोगों के मानने में यह कैसे आएगा?
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लेकिन
यह हिसाब ही अलग है ! तेरा जो गुणा है, उसमें तेरी रकम परमानेन्ट रकम है, और दूसरी टेम्परेरी रकम से उसे गुणा करने जाता है न! अब मेरी तो दोनों ही परमानेन्ट रकम हैं, इसलिए मेरा गुणा चलता रहता हैं और तू गुणा करने जाता है तो टेम्परेरी रकम उड़ जाती है, दूसरी टेम्परेरी रकम रखकर गुणा करने जाए तब तक वह पहलेवाली टेम्परेरी रकम उड़ जाती है, अत: तेरा गुणा कभी भी पूरा होनेवाला नहीं है, फिर सीधा चल न!
महाव्रत आपको समझ में आया? बरते, वह ! बरते मतलब याद भी नहीं रहे, सहज त्याग। अभी आपको बीड़ी का त्याग बरतता हो तो बीड़ी आपको याद भी नहीं आएगी और जिसने त्याग किया है उसे याद आता रहता है कि, 'मैंने बीड़ी का त्याग किया है।' जो त्याग बरते, उसकी तो बात ही अलग है! उस त्याग का अहंकार नहीं होता ! लेकिन कुछ लोग त्याग का पागल अहंकार करते हैं । अरे, त्याग बरत रहा है, तो सीधा रह न! त्याग के बारे में क्यों गाता रहता है? उसका अहंकार किसलिए करता है? बरता हुआ त्याग तो बहुत अच्छा कहलाता है । जितने लफड़े कम हुए उतनी उपाधि कम हो गई न! और अपना मोक्षमार्ग कैसा है? अक्रम मार्ग है न इसलिए पहले के जो लफड़े हैं, उन्हें रहने देना है, नये खड़े नहीं करने हैं, और पुराने निकाल देने हैं, वे भी जब अपने आप निकलेंगे, तब चले जाएँगे !
एक महाराज ने शोध करके खोज निकाला कि, 'अक्रम का मतलब तो अक्कर्मी (अभागा ) ही है न?' हाँ, खोज तो अच्छी की, यह भी साइन्टिस्ट का काम है न! इतनी शोध करना आ गया, वह भी साइन्टिस्ट का ही काम है न! नहीं तो ऐसी शोध करनी आती ही नहीं न। अक्कर्मी मतलब जिनके कर्म नहीं बंधते, हमें ऐसा कह रहे हैं । इसका मतलब हमारे लिए वे सीधा बोल रहे हैं न ! गालियाँ थोड़े ही दे रहे हैं?
ये सभी पंचमहाव्रतधारी आरोपित भाववाले हैं। पंचमहाव्रत सचमुच में हैं या आरोपित हैं, ऐसा कुछ सोचा ही नहीं न! आप खुद ही आरोपित