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योगेश्वर श्री कृष्ण
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में से नारायण बने थे, ज्ञानी थे। अब मंदिर में भगवान रहे ही कहाँ हैं? दस हज़ार साल पहले एक पुस्तक में लिखा गया था कि कलियुग में भगवान पैदा होंगे, वे अनंत प्रकार की अनंत कलाओंवाले होंगे! वर्ना कलियुग के मनुष्य सीधे नहीं होंगे। इसलिए भगवान खुद आए हैं। यहाँ तो जैन, वैष्णव, मुस्लिम, क्राइस्ट, सभी धर्मों का संगम है। 'हम' संगमेश्वर भगवान हैं। कृष्णवाले को कृष्ण मिलते हैं और खुदावाले को खुदा मिलते हैं, कितने ही हमारे पास कृष्ण भगवान के दर्शन करके गए हैं। यहाँ पर निष्पक्षपाती धर्म है।
यह तो कैसा है कि एक गड्ढा खोदता है और दूसरे को भरता है। एक जन्म में हिन्दू के वहाँ जन्म लेता है, तब मस्जिद तोड़ता है और जब वापस मुसलमान में जाता है तब मंदिर तोड़ता है। इस प्रकार हर एक जन्म में तोड़फोड़ ही करता है। वैष्णव के वहाँ जन्म लेता है तब जैनों की निंदा करता है और जैन में जन्म लेता है तब वैष्णवों की निंदा करता है। तीर्थंकर, राम, कृष्ण, सहजानंद, क्राइस्ट, पैगंबर और जरथुष्ट जो-जो हो चुके हैं उन सभी को, लोग जिन्हें पूजते हैं उन्हें, सभी को व्यवहार से मान्य करना पड़ेगा और यदि पहचान हो जाए तो 'एक हैं' और पहचान नहीं हो पाए तो 'अनेक' हैं। हमारे पास तो सभी धर्मों का संगम है। हमारे
और अन्य किसी भी भगवान के बीच भेद नहीं है। लाख ज्ञानियों का एक मत और एक अज्ञानी के लाख मत होते हैं।
पाँच हज़ार साल पहले कालिया नाग की बात रूपक में रखी थी, उस कालिया नाग को वश में करनेवाले, वे कृष्ण नहीं थे। यह तू चिढ़ता है, गुस्सा होता है, वही नाग है। कालिया नाग में तो मदारी का काम था, उसमें कृष्ण भगवान का क्या काम था? और कृष्ण भगवान को नाग को वश में करने की क्या ज़रूरत आ पडी थी? क्या उन्हें मदारी नहीं मिल रहे थे? लेकिन बात को कोई समझता ही नहीं और वह रूपक अभी तक चल रहा है। जहाँ कालियादमन हुआ, वहाँ पर कृष्ण हैं । इस कालियादमन में नाग मतलब क्रोध, तो जब क्रोध को वश कर ले, तब कृष्ण बना जा सकता है। जो कर्मों को कृष करे, वही कृष्ण !