Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 433
________________ ३९६ आप्तवाणी-२ ही रहती हैं और वाणी भी विषमय होती है, और जब 'हम स्वरूप का ज्ञान देते हैं, तब से निरंतर अमृत की बूंदें टपकने लगती हैं!' यह तो किसके जैसा है? कि अन्य कोई सच्चा रास्ता नहीं मिला इसलिए कीचड़ में गिरे ! आत्मा ज्ञानस्वरूप होता है। 'ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप,' वह मोक्ष का मार्ग है, इसके अलावा बाकी के सभी अन्य मार्ग हैं, वर्ना जीभ को तो कहीं तालू से लगाना पड़ता होगा? यह सब किसलिए करना पड़ता है? बाहर इतनी अधिक गर्मी है, तो फिर तालाब में सिर बाहर निकालकर पड़ा रहता है, उसके जैसा है! लेकिन आत्मा जाने बिना हल आ सके, ऐसा नहीं है! जब तक ज्ञान नहीं मिल जाए, तब तक किसी कोने में पड़े तो रहना चाहिए न? लेकिन यह सारा हठाग्रहियों का मार्ग है, यह मोक्ष का, वीतरागों का मार्ग नहीं है। कितने ही लोग 'अहम् ब्रह्मास्मि' ऐसे बोलते रहते हैं, उनका तो बल्कि भ्रम बढ़ा है, क्योंकि ब्रह्म को जाने बिना 'अहम् ब्रह्मास्मि' बोलने से क्या होगा? इस हिन्दुस्तान में कौन सी दुकान नहीं चलती? इस जगत् में तो सभी दुकानें चलती हैं। आज से दो हज़ार साल पहले ऐसा धर्म निकला था कि उधार लेकर घी पीओ, लूटपाट करो तो भी हर्ज नहीं है! उन लोगों का भी चला! इस जगत् में सभी दुकानें चलती हैं ! हिन्दुस्तान में अलग-अलग देवी-देवताओं को मानते हैं, वह किसलिए? क्योंकि हर एक के व्यू पोइन्ट अलग होते हैं, बुद्धि में फर्क, मति में फर्क होता है। मनुष्यों में चौदह लाख लेयर्स होते हैं, उनमें से हर एक लेयर के मनुष्य का डेवेलपमेन्ट अलग-अलग होता है और हर एक को उसके डेवेलपमेन्ट के हिसाब से धर्म और देवी-देवता मिल जाते हैं। धर्मों में भेद किसलिए है? कई लोग पुनर्जन्म में मानते हैं और कई नहीं मानते। हर एक व्यक्ति अलग-अलग डिग्री पर होता है और उसके अनुसार मत रखता है। आत्मभान, वह बिन्दु संयुक्तम् प्रश्नकर्ता : हिन्दुओं को जब तकलीफ पड़ती है तब तरह-तरह की मन्नते मानते हैं, वह अच्छा है?

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