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वीतराग मार्ग
सौ
उपयोगवाला सोना चाहिए, वहाँ तो निन्यानवे प्रतिशत नहीं होता, पूरा प्रतिशत चाहिए।
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वीतराग अर्थात् असल में पक्के
वीतराग कोई कच्ची माया नहीं है। सभी कच्चे होंगे, लेकिन वीतराग जैसे पक्के कोई नहीं हैं, वे तो असल में पक्के हैं ! सारी दुनिया के सभी अक़्लवाले उन्हें क्या कहते थे? भोला कहते थे । इन वीतरागों का जन्म हुआ न, तब उनके दोस्त उन्हें कहते थे कि, 'ये तो भोले हैं, मूर्ख हैं । ' अरे, तू मूर्ख है, तेरा बाप मूर्ख है और तेरा दादा मूर्ख है। वीतरागों को तो कोई मूर्ख बना ही नहीं सकता, वे इतने समझदार होते हैं। खुद का रास्ता नहीं छोड़ते हैं, वे खुद धोखा खा जाते हैं, लेकिन रास्ता नहीं चूकते। वे कहेंगे कि, ‘मैं धोखा नहीं खाऊँगा, तो यह मुझे मेरे रास्ते पर नहीं जाने देगा।' तो सामनेवाला क्या समझता है कि ये कच्चे हैं । अरे, नहीं है यह कच्चा, यह तो असल पक्का है ! इस दुनिया में जो धोखा खाए, जान-बूझकर धोखा खाए, उसके जैसा पक्का इस दुनिया में कोई है ही नहीं और जिन्होंने जान-बूझकर धोखा खाया वे वीतराग बन गए।
इसलिए जिसे अभी भी वीतराग बनना हो, तो जान-बूझकर धोखा खाना। अनजाने में तो पूरी दुनिया धोखा खा रही हैं । साधु, सन्यासी, बाबा हर कोई धोखा खा रहा है, लेकिन जान-बूझकर धोखा खाए, वे सिर्फ ये वीतराग ही हैं! बचपन से जान-बूझकर हर तरफ से धोखा खाते हैं, वे खुद जान-बूझकर धोखा खाते हैं फिर भी वापस धोखा देनेवाले को ऐसा नहीं लगने देते कि तूने मुझे धोखा दिया है, नहीं तो मेरी आँख तू पढ़ जाएगा, वे तो आँख में भी नहीं पढ़ने देते, वीतराग ऐसे पक्के होते थे! वे जानते थे कि इसका पुद्गल का व्यापार है, उस बेचारे को तो पुद्गल लेने दो न, मुझे तो पुद्गल दे देना है! लोभी हो तो उसे लोभ लेने देते, मानी हो तो उसे मान देकर भी खुद का हल निबेड़ा ले आते थे, खुद का रास्ता नहीं चूकते थे। खुद का मूल मार्ग जो प्राप्त हुआ है उसे चूकते नहीं थे, वीतराग ऐसे समझदार थे। और अभी भी जो भी ऐसा मार्ग पकड़ेगा उसके मोक्ष में परेशानी ही क्या आएगी ? 'ज्ञानीपुरुष' का तो आज यह शरीर