Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 453
________________ ४१६ आप्तवाणी-२ पर आरोप किया-वह विकल्प, वह आरोपित भाव कहलाता है। संकल्पविकल्प को और आरोपित भाव को भगवान ने इस तरह वीतराग भाषा में कहा है लेकिन लोकभाषा को नकारा नहीं है भगवान ने, क्योंकि लोकभाषा भी चलनी चाहिए न? लोकभाषा को नकार दें तो लोग उलझते रहेंगे। आपको वीतराग भाषा जाननी है या लोकभाषा जाननी है? प्रश्नकर्ता : वीतराग भाषा। दादाश्री : 'यह' वीतराग भाषा है, यानी कि अपने में से 'मैं चंदूभाई हूँ' गया तो सबकुछ गया। 'मैं-पन' चला जाएगा और यह पोषाक 'मेरी' है उसमें भी जहाँ 'मैं-पन' चला गया तो खत्म हो जाएगा। चंदूभाई का 'मैं-पन' गया तो 'मेरा' भी चला जाएगा-संकल्प भी खत्म हो जाएगा! मन में जो ऐसा होता है, उसे जगत् संकल्प-विकल्प कहता है। जबकि वीतरागों ने उसे अध्यवसान कहा है। वीतरागों ने उनकी भाषा में अलग लिखा है सब और वह भाषा समझ में आए तब काम की है। जौहरी क्या एक ही प्रकार के हैं? यहाँ मुंबई में जौहरी होते हैं न, वे लाख का हीरा लेते हैं, वह मुंबईवाला मद्रासवाले को सवा लाख में बेचता है, क्योंकि मद्रासवाले बहुत बड़े जौहरी। मद्रासवाला वापस मुंबईवाले से भी अधिक पेरिस में ढाई लाख में बेचता है। यदि महंगा ले तो वह जौहरी सच्चा है। जो महंगा ले और अधिक क़ीमत दे, वह सच्चा जौहरी कहलाता है। मूर्ख नहीं देता, मूर्ख तो कम देने का प्रयत्न करता है कि पाँच सौ में देना हो तो दे, नहीं तो चला जा! सच्चा जौहरी उसकी क़ीमत देता है। भूलें मिटानी वही वीतराग मार्ग वीतरागों का मार्ग यानी कि भूलें मिटाना-वह, जहाँ-तहाँ से भूलें मिटाना और लोकभाषा में से वीतरागभाषा में आना-वह। वीतरागों का मार्ग बहुत सरल है। यदि 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ न तो मेहनत ही नहीं करनी पड़ती, वर्ना मेहनत से तो कभी भी किसी का मोक्ष नहीं हुआ है और न ही कभी होगा। यदि मेहनत से मोक्ष हो सकता तो ये लोग क्रियाएँ करके मेहनत करते हैं और मज़दूरे ईंटें उठाने की मेहनत करते हैं-इन दोनों में

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