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वेदांत
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दादाश्री : जिसे इस बात में श्रद्धा है उसके लिए यह बात अच्छी है। जो नहीं मानते, उनमें मार - ठोककर श्रद्धा बैठाई नहीं जा सकती । पूर्व का निमित्त, पूर्व के कनेक्शन हों तो निमित्त से काम हो जाता है, इसलिए मन्नते रखनेवाले की निंदा नहीं करनी चाहिए ।
कविराज ने गाया है,
'बिन्दु संयुक्तम् ॐकार नुं लक्ष्य, प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष मोक्षार्थी आतम।'
कल्पवृक्ष कब कहलाता है? कल्पवृक्ष यानी कि जब मोक्ष जाने का समय हो जाता है, तब बिन्दु संयुक्तम् ॐकार का लक्ष्य बैठता है। 'शुद्धात्मा' का लक्ष्य बैठे तब मोक्ष में जाने की तैयारी हुई ! ये लोग कहते हैं कि 'हम कपाल पर बिंदु का ध्यान करते हैं, ' उससे तो एकाग्रता बढ़ती है, लेकिन 'ॐ क्या है?' जब तक वह नहीं जानेगा तब तक कुछ नहीं होगा। इसके लिए तो प्रत्यक्ष ॐ चाहिए, 'ज्ञानीपुरुष' चाहिए। फिर सिर्फ ॐ से ही काम नहीं चलता, 'बिंदु संयुक्तम्' चाहिए। यानी कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का ज्ञान मिल जाए, लक्ष्य बैठ जाए तब 'ॐकार बिंदु संयुक्तम्' कहलाता है, तब मोक्ष होता है !
'ॐकार बिंदु संयुक्तम् नित्यम् ध्यायन्ति योगिनः' जो मोक्ष में जानेवाले योगी थे वे नित्य ध्यान करते थे और पूर्व काल में 'क्रमिक मार्ग' में ऐसा था, अब इस काल में 'अक्रम मार्ग' में ' ॐकार बिंदु संयुक्तम्' का ध्यान यहाँ पर शुरू हुआ है !
वेदांत ने जीव, ईश्वर और परमेश्वर इस तरह तीन भाग किए हैं। ईश्वर की शक्ति कैसी है? अर्ध परमात्मा जैसी शक्ति है ! मनुष्य में आया यानी कि ईश्वर जैसा बना, कहलाता है । यह मनुष्यपन तो ऐश्वर्य कहलाता है! यहाँ तो सभी, गाय, भैंस अपने लिए दूध देते हैं, आम फल देता है, और वहीं पर यदि ऐश्वर्य खो बैठे तो वह मनुष्य कैसा? मनुष्यपन में तो खुद परमेश्वर बनना है, परमात्मा बनना है ! इसके बजाय लोग पाशवता के और आर्तध्यान और रौद्रध्यान करते हैं! यहाँ तो मोक्ष का मार्ग ढूँढना है,