Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 439
________________ द्वैताद्वैत प्रश्नकर्ता : कुछ लोग कहते हैं कि 'जगत् में आत्मा अद्वैत है' क्या यह सच है? दादाश्री : वे कहते हैं, लेकिन अभी तो अद्वैत दृष्टि ही उत्पन्न नहीं हुई है और आत्मा को अद्वैत कहना गुनाह है। आत्मा वस्तु ही कुछ और है और यह तो सिर्फ अद्वैतभाव उत्पन्न करते हैं। लेकिन जब कोई मारे या जेब काट ले, तब वह अद्वैतभाव कहाँ चला जाता है? तभी पता चलता है कि आत्मा प्राप्त हुआ है या नहीं! जिसने आत्मा प्राप्त कर लिया हो उसे तो निर्भयता और स्वतंत्रता उत्पन्न हो जाती है, लेकिन फिर भी अद्वैतभाव को, 'रिलेटिव आत्मा प्राप्त कर लिया,' ऐसा कहा जाता है और ऐसे तो हिन्दुस्तान में बहुत हैं। ये सभी तरह-तरह के पक्षों में पड़ गए हैं! जैन पडे हैं द्वैत में और ये वेदांती लोग पडे हैं अद्वैत में कि 'मैं आत्मा ही हूँ, शुद्ध ही हूँ!' तो मंदिर में किसलिए जाते हो? पुस्तक किसलिए पढ़ते हो? ये एकांतिक अद्वैत में पड़ गए और जैन लोग एकांतिक द्वैत में पड़ गए! 'मैं करूँ तभी होगा न? मैंने क्रोध किया इसलिए मुझे भोगना है न?' यह तो तरह-तरह के भूत चिपक गए हैं! उसमें भी फिर तरहतरह की दुकानें खोली हैं लोगों ने विशिष्टाद्वैत, शुद्धाद्वैत वगैरह। ये अद्वैतवाले यहाँ पर हमें मिलते हैं, उन्हें मुझे कहना पड़ता है कि, 'तू अद्वैतवाला है तो यहाँ क्या जानने के लिए आया है?' तो वह कहता है, 'आत्मा को जानना है।' मैंने कहा, 'ना, अद्वैतवाले को आत्मा जानना बाकी नहीं रहता। तुझे यह अद्वैत का स्टेशन कहाँ से मिला? तुझे ऐसे गुरु कहाँ से मिल गए, जिन्होंने ऐसा सिखाया?' वह मुझे कहने लगा, ‘दादा, आप क्यों द्वैत में रहते हो?' मैंने कहा, 'द्वैत को तू समझता है? अद्वैत को तू समझता है? बात को समझ। आत्मा

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