Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 437
________________ ४०० आप्तवाणी-२ को छूकर संबंध लें, तो वह ब्रह्मसंबंध है। सच्चा ब्रह्मसंबंध देनेवाले शायद ही कभी मिलते हैं। दस लाख साल पहले धर्म अस्तव्यस्त हो गए थे। तब के केसरिया जी में 'दादा भगवान ऋषभदेव' सर्व धर्मों के मूल, वे आदिम भगवान, प्रथम भगवान हैं। और दस लाख सालों बाद आज ये 'दादा भगवान' आए हैं ! उनके दर्शन कर लेना और काम निकाल लेना। प्रत्यक्ष भगवान आए हैं और उनकी यह देह तो मंदिर है, तो उस मंदिर का नाश हो जाए उससे पहले मंदिर में बैठे हुए प्रकट 'दादा भगवान के दर्शन कर लेना। ब्रह्मसंबंध ऐसा बाँध लेना कि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, सभी में भगवान दिखें! कच्चा संबंध बाँधोगे तो दिन नहीं बदलेंगे। इसलिए पक्का संबंध बाँध लेना। कविराज ने गाया है न, " मन-वचन-कायाथी तद्दन जुदो एवो 'हुं' ब्रह्मसंबंधवाळो छु।" मन-वचन-काया से बिल्कुल जुदा ऐसा 'मैं' ब्रह्मसंबंधवाला हूँ संसार व्यवहार में आबरू मुट्ठी में रहे वैसा कर दे, ऐसा है यह मंत्र! इस मंत्र से ब्रह्म की पुष्टि होती रहेगी और ब्रह्मनिष्ठ बन जाओगे। 'ज्ञानीपुरुष' के साथ लगनी लगे, वही ब्रह्मसंबंध। माया के साथ बहुत जन्मों से मित्रता की है, उसे निकाल बाहर करें, फिर भी वापस आ जाती है, लेकिन ब्रह्मसंबंध हो जाए, तब माया भाग जाती है। मोहबाज़ार में कहीं भी घुसना मत। विवाह में मोह और माया का बाज़ार होता है। माया और उसके बच्चे अपनी आबरू ले लेते हैं और भगवान अपनी आबरू सँभालते हैं। हमारे आसरे आया उसका कोई नाम नहीं ले सकता। यहाँ किसी कलेक्टर की पहचानवाला हो तो उसका कोई नाम नहीं लेता, कहते हैं कि, 'भाई, इनकी तो कलेक्टर से पहचान है।' उसी तरह आपकी इन 'दादा भगवान' से पहचान हुई है कि जिन्हें तीन लोकों के नाथ वश में बरतते हैं! फिर आपका नाम कौन लेनेवाला है? हमारा नाम देना और हमारी चाबी लेकर जाओगे तो 'रणछोड़ जी' आपके साथ बातें करेंगे। हमारा नाम रणछोड़ जी को बताना तो वे बोलने

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